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भगवती-२५/-/६/९२३
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उदीरणा करता है तब आयुष्य, वेदनीय और मोहनीय को छोड़कर शेष पांच और दो की उदीरणा करता है तो नाम और गोत्र कर्म की उदीरणा करता है । भगवन् ! स्नातक ? गौतम ! दो की अथवा बिलकुल उदीरणा नहीं करता । जब दो की उदीरणा करता है तो नाम और गोत्र कर्म की उदीरणा करता है ।
[९२४] भगवन् ! पुलाक, पुलाकपन को छोड़ता हुआ क्या छोड़ता है और क्या प्राप्त करता है ? गौतम ! वह पुलाकपन का त्याग करता है और कषायकुशीलपन या असंयम को प्राप्त करता है । भगवन् ! बकुश ? गौतम ! वह बकुशत्व का त्याग करता है और प्रतिसेवनाकुशीलत्व, कषायकुशीलत्व, असंयम या संयमासंयम को प्राप्त करता है । भगवन् ! प्रतिसेवनाकुशील ? गौतम ! वह प्रतिसेवनाकुशीलत्व को छोड़ता है और बकुशत्व, कषायकुशीलत्व असंयम या संयमासंयम को पाता है । भगवन् ! कषायकुशील ? गौतम ! वह कषायकुशीलत्व को छोड़ता है और पुलाकत्व, बकुशत्व, प्रतिसेवनाकुशीलत्व, निर्ग्रन्थत्व, असंयम अथवा संयमासंयम को प्राप्त करता है । भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! वह निर्ग्रन्थता को छोड़ता है और कषायकुशीलत्व, स्नातकत्व या असंयम को प्राप्त करता है । भगवन् ! स्नातक ? गौतम ! स्नातक, स्नातकत्व को छोड़ता है और सिद्धगति को प्राप्त करता है ।
[९२५] भगवन् ! पुलाक संज्ञोपयुक्त होता है अथवा नोसंज्ञोपयुक्त होता है ? गौतम ! वह संज्ञोपयुक्त नहीं होता, नोसंज्ञोपयुक्त होता है । भगवन् ! बकुश ? गौतम ! वह संज्ञोपयुक्त भी होता है और नोसंज्ञोपयुक्त भी होता है । इसी प्रकार प्रतिसेवना और कषाय भी जानना कुशील । कषायकुशील के सम्बन्ध मे भी इसी प्रकार जानना चाहिए । निर्ग्रन्थ और स्नातक को पुलाक के समान नोसंज्ञोपयुक्त कहना चाहिए ।
[९२६]भगवन् ! पुलाक आहारक होता है अथवा अनाहारक होता है ? गौतम ! वह आहारक होता है, अनाहारक नहीं होता है । इसी प्रकार निर्ग्रन्थ तक कहना चाहिए । भगवन् ! स्नातक ? गौतम ! वह आहारक भी होता है और अनाहारक भी होता ।
[९२७] भगवन् ! पुलाक कितने भव ग्रहण करता है ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट तीन भव । भगवन् ! बकुश ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट आठ । इसी प्रकार प्रतिसेवन और कषाय कुशील है । कषायकुशील भी इसी प्रकार है । निर्ग्रन्थ पुलाक के समान है । भगवन् ! स्नातक ? वह एक भव ग्रहण करता है ।
[९२८] भगवन् ! पुलाक के एकभव-ग्रहण-सम्बन्धी आकर्ष कितने कहे हैं ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट तीन आकर्ष । भगवन् ! बकुश ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट सैकड़ों आकर्ष होते हैं । इसी प्रकार प्रतिसेवना और कषायकुशील को भी जानना । भगवन् ! . निर्ग्रन्थ ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट दो आकर्ष होते हैं । भगवन् ! स्नातक के ? गौतम ! उसको एक ही आकर्ष होता है ।
__ भगवन् ! पुलाक के नाना-भव-ग्रहण-सम्बन्धी आकर्ष कितने होते हैं ? गौतम ! जघन्य दो और उत्कृष्ट सात । भगवन् ! बकुश के ? जघन्य दो और उत्कृष्ट सहस्त्रों । इसी प्रकार कषायकुशील तक कहना । भगवन् ! निर्ग्रन्थ के ? गौतम ! जघन्य दो और उत्कृष्ट पांच | भगवन् ! स्नातक के ? गौतम ! एक भी आकर्ष नहीं होता ।
[९२९] भगवन् ! पुलाकत्व काल की अपेक्षा कितने काल तक रहता है । गौतम !