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________________ २८२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद जानना । भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! वह वर्द्धमान और अवस्थित परिणाम वाला होता है । इसी प्रकार स्नातक के । भगवन् ! पुलाक कितने काल तक वर्द्धमानपरिणाम में होता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त । भगवन् ! वह कितने काल तक हीयमानपरिणामी होता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त । भगवन् ! वह कितने काल तक अवस्थितपरिणामी होता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट सात समय । इसी प्रकार कषायकुशील तक जानना । भगवन् ! निर्ग्रन्थ कितने काल तक वर्द्धमानपरिणामी होता है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त । भगवन् ! निर्ग्रन्थ कितने काल तक अवस्थितपरिणामी होता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त । भगवन् ! स्नातक कितने काल तक वर्द्धमानपरिणामी होता है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त | भगवन् ! स्नातक कितने काल तक अवस्थितपरिणामी रहता है ? जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटिवर्ष । [९२१] भगवन् ! पुलाक कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधता है ? गौतम ! वह आयुष्यकर्म को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियाँ बांधता है । भगवन् ! बकुश ? गौतम ! वह सात अथवा आठ कर्मप्रकृतियाँ बांधता है । यदि सात कर्मप्रकृतियाँ बांधता है, तो आयुष्य को छोड़कर शेष सात और यदि आयुष्यकर्म बांधता है तो सम्पूर्ण आठ कर्मप्रकृतियों को बांधता है । इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील को समझना । भगवन् ! कषायकुशील ? गौतम ! वह सात, आठ या छह कर्मप्रकृतियाँ बांधता है । सात बांधता हुआ आयुष्य के अतिरिक्त शेष सात । आठ बांधता हुआ परिपूर्ण आठ कर्मप्रकृतियाँ और छह बांधता हुआ आयुष्य और मोहनीय कर्म को छोड़कर शेष छह कर्मप्रकृतियाँ बांधता है । भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! वह एकमात्र वेदनीयकर्म बांधता है । भगवन् ! स्नातक ? गौतम ! वह एक कर्मप्रकृति बांधता है, अथवा अबन्धक होता है । एक कर्मप्रकृति बांधता है तो वेदनीयकर्म बांधता है । [९२२] भगवन् ! पुलाक कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? गौतम ! नियम से आठों कर्मप्रकृतियों का । इसी प्रकार कषायकुशील तक कहना | भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! मोहनीयकर्म को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है । भगवन् ! स्नातक ? गौतम ! वह वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र, इन चार कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है । [९२३] भगवन् ! पुलाक कितनी कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है ? गौतम ! वह आयुष्य और वेदनीय के सिवाय शेष छह कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है । भगवन् ! बकुश ? गौतम ! वह सात, आठ या छह कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है । सात की उदीरणा करता हुआ आयुष्य को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियों को, आठ की उदीरणा करता है तो परिपूर्ण आठ कर्मप्रकृतियों की तथा छह की उदीरणा करता है तो आयुष्य और वेदनीय को छोड़कर छह की उदीरणा करता है । इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील जानना । कषायकुशील । गौतम ! वह सात, आठ, छह या पांच कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है । सात की उदीरणा करता है तो आयुष्य को छोड़कर सात, आठ की उदीरणा करता है तो परिपूर्ण आठ, छह की उदीरणा करता है तो आयुष्य और वेदनीय को छोड़कर शेष छह तथा पांच की उदीरणा करता है तो आयुष्य, वेदनीय और मोहनीय को छोड़कर, शेष पांच की उदीरणा करता है । भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! पांच अथवा दो । जब वह पांच की
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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