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भगवती-२५/-/५/८९५ अनन्त अतीतकालरूप है, किन्तु अतीताद्धाकाल से अनागताद्धाकाल एक समय अधिक है और अनागताद्धाकाल से अतीताद्धाकाल एक समय न्यून है । भगवन् ! सर्वाद्धा क्या संख्यात अतीताद्धाकालरूप है ? इत्यादि । गौतम ! वह अतीताद्धाकाल से सर्वाद्धा कुछ अधिक द्विगुण है और अतीताद्धाकाल, सर्वाद्धा से कुछ कम अर्द्धभाग है । भगवन् ! सर्वाद्धा क्या संख्यात अनागताद्धाकालरूप है ? इत्यादि । गौतम ! वह सर्वाद्धा, अनागत-अद्धाकल से कुछ कम दुगुना है और अनागताद्धाकाल सर्वाद्धा से सातिरेक अर्द्धभाग है ।
[८९६] भगवन् ! निगोद कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! दो प्रकार के निगोद और निगोदजीव । भगवन् ! ये निगोद कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के सूक्ष्मनिगोद और बादरनिगोद । इस प्रकार निगोद को जीवाभिगमसूत्र अनुसार जानना ।
[८९७] भगवन् ! नाम कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! छह प्रकार के औदयिक यावत् सान्निपातिक । भगवन् ! वह औदयिक नाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार काउदय और उदयनिष्पन्न । सत्रहवें शतक के प्रथम उद्देशक में जैसे भाव के सम्बन्ध में कहा है, वैसे ही यहाँ कहना । वहाँ 'भाव' के सम्बन्ध में कहा है, जबकि यहाँ 'नाम' के विषय में है । शेष सान्निपातिक-पर्यन्त पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है' ।
| शतक-२५ उद्देशक-६ | [८९८] निर्ग्रन्थ सम्बन्धी छत्रीश द्वार है- जैसेकि वेद, राग, कल्प, चारित्र, प्रतिसेवना, ज्ञान, तीर्थ, लिंग, शरीर, क्षेत्र, काल, गति, संयम, निकाशर्ष । तथा
[८९९] योग, उपयोग, कषाय, लेश्या, परिणाम, बन्ध, वेद, कर्मों की उदीरणा, उपसंपत्, संज्ञा, आहार । तथा
[९००] भव, आकर्ष, काल, अन्तर, समुद्घात, क्षेत्र, स्पर्शना, भाव, परिमाण और अल्पबहुत्व ।
[९०१) राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवन् ! निर्ग्रन्थ कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पांच प्रकार के पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक ।
भगवन् ! पुलाक कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पांच प्रकार के ज्ञानपुलाक, दर्शनपुलाक, चारित्रपुलाक, लिंगपुलाक, यथासूक्ष्मपुलाक | भगवन् ! बकुश कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पांच प्रकार के आभोगबकुश, अनाभोगबकुश, संवृतबकुश, असंवृतबकुश
और यथासूक्ष्मबकुश । भगवन् ! कुशील कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील । भगवन् ! प्रतिसेवनाकुशील कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पांच प्रकार के ज्ञानप्रतिसेवनाकुशील, दर्शनप्रतिसेवनाकुशील, चारित्रप्रतिसेवनाकुशील, लिंगप्रतिसेवनाकुशील और यथासूक्ष्मप्रतिसेवनाकुशील । भगवन् ! कषायकुशील कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पांच प्रकार के ज्ञानकषायकुशील, दर्शनकषायकुशील, चारित्रकषायकुशील, लिंगकषायकुशील और पांचवें यथा-सूक्ष्मकषायकुशील ।
भगवन् ! निर्ग्रन्थ कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पांच प्रकार के प्रथम-समयनिर्ग्रन्थ, अप्रथम-समय-निर्ग्रन्थ, चरम-समय-निर्ग्रन्थ, अचरम-समय-निर्ग्रन्थ और पांचवें यथासूक्ष्मनिर्ग्रन्थ । भगवन् ! स्नातक कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पांच प्रकार के