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भगवती-२५/-/३/८७१
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(गौतम !) अनन्त हैं । इसी प्रकार आयतसंस्थान तक जानना चाहिए ।
भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! अनन्त हैं । भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी में वृत्तसंस्थान संख्यात है, इत्यादि अनन्त हैं ? पूर्ववत् समझना । इसी प्रकार आयत तक समझना । भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी में परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं ? इत्यादि पूर्ववत् समझना । इसी प्रकार आगे आयत पर्यन्त (समझना चाहिए ।) इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी तक समझना चाहिए ।
____भगवन् ! सौधर्मकल्प में परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं ? पूर्ववत् समझना । अच्युत तक पूर्ववत् । भगवन् ! ग्रैवेयक विमानों में परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं ? इत्यादि प्रश्न । (गौतम !) पूर्ववत् जानना । इसी प्रकार यावत् अनुत्तरविमानों के विषय में पूर्ववत् । इसी प्रकार यावत् ईषत्प्राग्भारापृथ्वी के विषय में भी पूर्ववत् ।
भगवन् ! जहाँ एक यवाकार परिमण्डलसंस्थान है, वहाँ अन्य परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! ये अनन्त हैं । भगवन् ! वृत्तसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात है या अनन्त हैं ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार आयतसंस्थान तक जानना । भगवन् ! जहाँ यवाकार एक वृत्तसंस्थान है, वहाँ परिमण्डलसंस्थान कितने हैं ? गौतम ! पूर्ववत् । जहाँ यवाकार अनेक वृत्तसंस्थान हों, वहाँ परिमण्डलसंस्थान कितने हैं ? पूर्ववत् । इसी प्रकार वृत्तसंस्थान यावत् आयतसंस्थान भी अनन्त हैं । इसी प्रकार एक-एक संस्थान के साथ पांचों संस्थानों के सम्बन्ध का विचार करना चाहिए ।
भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में जहाँ एक यवमध्य परिमण्डलसंस्थान है, वहाँ दूसरे परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! वे अनन्त हैं । भगवन् ! जहाँ यवाकार एक वृत्तसंस्थान है वहाँ परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार आयत पर्यन्त समझना ।
भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में जहाँ यवाकार एक वृत्तसंस्थान है, वहाँ परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! वे अनन्त हैं । भगवन् ! जहाँ यवाकर अनेक वृत्तस्थान हैं, वहाँ परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं ? इत्यादि । गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार आयत तक जानना । यहाँ फिर पूर्ववत् प्रत्येक संस्थान के साथ पांचों संस्थानों का आयतसंस्थान तक विचार करना चाहिए । इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी तक कहना चाहिए । इसी प्रकार कल्पों से ईषत्प्राग्भारापृथ्वी पर्यन्त के लिए जानना चाहिए ।
भगवन् ! वृत्तसंस्थान कितने प्रदेश वाला है और कितने आकाशप्रदेशों में अवगाढरहा हुआ है ? गौतम ! वृत्तसंस्थान दो प्रकार का धनवृत्त और प्रतवृत्त । इनमें जो प्रतवृत्त है, वह दो प्रकार का ओज-प्रदेशिक और युग्म-प्रदेशिक । इनमें से ओज-प्रदेशिक प्रतरवृत्त जघन्य पंच-प्रदेशिक और पांच आकाश-प्रदेशों में अवगाढ़ है तथा उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेशिक
और असंख्यात आकाश-प्रदेशों में अवगाढ़ है और जो युग्म-प्रदेशिक प्रतवृत्त है, वह जघन्य बारह प्रदेश वाला और बारह आकाश-प्रदेशों में अवगाढ़ होता है तथा उत्कृष्ट अनन्तप्रदेशिक
और असंख्यात आकाश-प्रदेशों में अवगाढ़ होता है । घनवृतसंस्थान दो प्रकार का ओजप्रदेशिक और युप्म-प्रदेशिक । ओज-प्रदेशिक जघन्य सात प्रदेश वाला और सात आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशों वाला और असंख्यात आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ 1417