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________________ भगवती-२५/-/३/८७१ २५७ (गौतम !) अनन्त हैं । इसी प्रकार आयतसंस्थान तक जानना चाहिए । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! अनन्त हैं । भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी में वृत्तसंस्थान संख्यात है, इत्यादि अनन्त हैं ? पूर्ववत् समझना । इसी प्रकार आयत तक समझना । भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी में परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं ? इत्यादि पूर्ववत् समझना । इसी प्रकार आगे आयत पर्यन्त (समझना चाहिए ।) इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी तक समझना चाहिए । ____भगवन् ! सौधर्मकल्प में परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं ? पूर्ववत् समझना । अच्युत तक पूर्ववत् । भगवन् ! ग्रैवेयक विमानों में परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं ? इत्यादि प्रश्न । (गौतम !) पूर्ववत् जानना । इसी प्रकार यावत् अनुत्तरविमानों के विषय में पूर्ववत् । इसी प्रकार यावत् ईषत्प्राग्भारापृथ्वी के विषय में भी पूर्ववत् । भगवन् ! जहाँ एक यवाकार परिमण्डलसंस्थान है, वहाँ अन्य परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! ये अनन्त हैं । भगवन् ! वृत्तसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात है या अनन्त हैं ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार आयतसंस्थान तक जानना । भगवन् ! जहाँ यवाकार एक वृत्तसंस्थान है, वहाँ परिमण्डलसंस्थान कितने हैं ? गौतम ! पूर्ववत् । जहाँ यवाकार अनेक वृत्तसंस्थान हों, वहाँ परिमण्डलसंस्थान कितने हैं ? पूर्ववत् । इसी प्रकार वृत्तसंस्थान यावत् आयतसंस्थान भी अनन्त हैं । इसी प्रकार एक-एक संस्थान के साथ पांचों संस्थानों के सम्बन्ध का विचार करना चाहिए । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में जहाँ एक यवमध्य परिमण्डलसंस्थान है, वहाँ दूसरे परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! वे अनन्त हैं । भगवन् ! जहाँ यवाकार एक वृत्तसंस्थान है वहाँ परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार आयत पर्यन्त समझना । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में जहाँ यवाकार एक वृत्तसंस्थान है, वहाँ परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! वे अनन्त हैं । भगवन् ! जहाँ यवाकर अनेक वृत्तस्थान हैं, वहाँ परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं ? इत्यादि । गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार आयत तक जानना । यहाँ फिर पूर्ववत् प्रत्येक संस्थान के साथ पांचों संस्थानों का आयतसंस्थान तक विचार करना चाहिए । इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी तक कहना चाहिए । इसी प्रकार कल्पों से ईषत्प्राग्भारापृथ्वी पर्यन्त के लिए जानना चाहिए । भगवन् ! वृत्तसंस्थान कितने प्रदेश वाला है और कितने आकाशप्रदेशों में अवगाढरहा हुआ है ? गौतम ! वृत्तसंस्थान दो प्रकार का धनवृत्त और प्रतवृत्त । इनमें जो प्रतवृत्त है, वह दो प्रकार का ओज-प्रदेशिक और युग्म-प्रदेशिक । इनमें से ओज-प्रदेशिक प्रतरवृत्त जघन्य पंच-प्रदेशिक और पांच आकाश-प्रदेशों में अवगाढ़ है तथा उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेशिक और असंख्यात आकाश-प्रदेशों में अवगाढ़ है और जो युग्म-प्रदेशिक प्रतवृत्त है, वह जघन्य बारह प्रदेश वाला और बारह आकाश-प्रदेशों में अवगाढ़ होता है तथा उत्कृष्ट अनन्तप्रदेशिक और असंख्यात आकाश-प्रदेशों में अवगाढ़ होता है । घनवृतसंस्थान दो प्रकार का ओजप्रदेशिक और युप्म-प्रदेशिक । ओज-प्रदेशिक जघन्य सात प्रदेश वाला और सात आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ होता है तथा उत्कृष्ट अनन्त प्रदेशों वाला और असंख्यात आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ 1417
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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