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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
है या दो प्रदेश वाले इत्यादि प्रश्न । गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के भाषापद अनुसार आनुपूर्वी से ग्रहण करता है अनानुपूर्वी से ग्रहण नहीं करता है, तक कहना चाहिए । भगवन् ! जीव कितनी दिशाओं से आए हुए द्रव्य ग्रहण करता है ? गौतम ! निर्व्याघात हो तो छहों दिशाओं से इत्यादि औदारिकशरीर से सम्बन्धित वक्तव्यतानुसार कहना । भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को श्रोत्रेन्द्रिय रूप में ग्रहण करता है ? ( इत्यादि पूर्ववत्) । गौतम ! वैक्रियशरीर-सम्बन्धी वक्तव्यता के समान जानो । इसी प्रकार यावत् जिह्वेन्द्रिय- पर्यन्त जानना । स्पर्शेन्द्रिय के विषय में
दारिकशरीर के समान समझना चाहिए । कार्मणशरीर की वक्तव्यता के समान मनोयोग की वक्तव्यता समझनी चाहिए तथा नियम से छहों दिशाओं से आए हुए द्रव्यों को ग्रहण करता है । इसी प्रकार वचनयोग के द्रव्यों के विषय में भी समझना चाहिए । काययोग के रूप में ग्रहण का कथन औदारिकशरीर विषयक कथनवत् है ।
भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करता है... ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! औदारिकशरीर के समान कहना चाहिए, यावत् कदाचित् पांच दिसा से आए हुए द्रव्यों को ग्रहण करता है । कई आचार्य चौबीस दण्डकों पर इन पदों को कहते हैं, किन्तु जिसके जो ( शरीर, इन्द्रिय, योग आदि) हो, वही उसके लिए यथायोग्य कहना चाहिए । शतक - २५ उद्देशक - ३
[८७०] भगवन् ! संस्थान कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! छह प्रकार केपरिमण्डल, वृत्त, त्र्यस्त्र, चतुरस्त्र, आयत और अनित्थंस्थ ।
भगवन् ! परिमण्डल संस्थान द्रव्यार्थरूप से संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! वे संख्यात नहीं हैं, असंख्यात भी नहीं हैं, किन्तु अनन्त हैं । भगवन् ! वृत्त संस्थानपृच्छा गौतम ! पूर्ववत् (अनन्त) हैं । इसी प्रकार अनित्थंस्थ- संस्थान पर्यन्त जानना । इसी प्रकार प्रदेशार्थरूप से तथा द्रव्यार्थ प्रदेशार्थरूप से भी जानो ।
भगवन् ! इन परिमण्डल, यावत् अनित्थंस्थ संस्थानों में द्रव्यार्थरूप से, प्रदेशार्थरूप से और द्रव्यार्थ - प्रदेशार्थरूप से कौन किन यावत् विशेषाधिक है ? गौतम ! द्रव्यार्थरूप से परिमण्डल - संस्थान सबसे अल्प हैं, उनसे वृत्तसंस्थान संख्यातगुणा हैं, उनसे चतुरस्त्र - संस्थान संख्यातगुणा हैं, उनसे व्यस्त्र - संस्थान संख्यातगुणा हैं, उनसे आयत-संस्थान संख्यातगुणा हैं। और उनसे अनित्थंस्थ- संस्थान असंख्यातगुणा हैं । प्रदेशार्थरूप से - परिमण्डल- संस्थान सबसे अल्प हैं, उनसे वृत्तसंस्थान संख्यातगुणा हैं, इत्यादि यावत् - 'अनित्थंस्थ- संस्थान प्रदेशार्थरूप से असंख्यातगुणा हैं', द्रव्यार्थ प्रदेशार्थरूप से - परिमण्डल- संस्थान द्रव्यार्थरूप से सबसे अल्प हैं, इत्यादि जो पाठ द्रव्यार्थ सम्बन्धी हैं, वही यहाँ द्रव्यार्थ प्रदेशार्थरूप से जानना चाहिए; यावत्अनित्थंस्थ-संस्थान द्रव्यार्थरूप से असंख्यातगुणा हैं । द्रव्यार्थरूप अनित्थंस्थ-संस्थानों से, प्रदेशार्थरूप से परिमण्डलसंस्थान असंख्यातगुणा हैं; इत्यादि, यावत् अनित्थंस्थ-संस्थान प्रदेशार्थरूप से असंख्यातगुणा हैं ।
[८७१] भगवन् ! संस्थान कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पांच प्रकार के परिमण्डल (से लेकर) आयत तक । भगवन् ! परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं, अथवा अनन्त हैं ? गौतम ! वे अनन्त हैं । भगवन् ! वृत्तसंस्थान संख्यात हैं, इत्यादि