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________________ २५४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद जाता है ? गौतम ! आहारक नारक से अनाहारक नारक और अनाहारक नारक से आहारक नारक कदाचित् हीनयोगी, कदाचित् तुल्ययोगी और कदाचित् अधिकयोगी होता है । यदि वह हीन योग वाला होता है तो असंख्यातवें भागहीन, संख्यातवें भागहीन, संख्यातगुणहीन या असंख्यातगुणहीन होता है । यदि अधिक योग वाला होता है तो असंख्यातवाँ भाग अधिक, संख्यातवाँ भाग अधिक, संख्यातगुण अधिक या असंख्यातगुण अधिक होता है । इस कारण से कहा गया है । इस प्रकार यावत् वैमानिक तक जानना । [८६५] भगवन् ! योग कितने प्रकार का है ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार का । यथासत्य-मनोयोग, मृषा-मनोयोग, सत्यमृषा-मनोयोग, असत्यामृषा-मनोयोग, सत्य-वचनयोग, मृषावचनयोग, सत्यमृषा-वचनयोग, असत्यामृषा-वचनयोग, औदारिकशरीर-काययोग, औदारिकमिश्रशरीर-काययोग, वैक्रियशरीर-काययोग, वैक्रियमिश्र-शरीरकाययोग, आहारकशरीर-काययोग, आहारकमिश्रशरीर-काययोग और कार्मण-शरीर-काययोग । भगवन् ! इन पन्द्रह प्रकार के योगों में, कौन किस योग से जघन्य और उत्कृष्ट रूप से अल्प, बहुत तुल्य या विशेषाधिक है ? गौतम ! कार्मणशरीर का जघन्य काययोग सबसे अल्प है, उससे औदारिकमिश्र का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, उससे वैक्रियमिश्र का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, उससे औदारिकशरीर का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, उससे वैक्रियशरीर का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, उससे कार्मणशरीर का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है, उससे आहारिकमिश्र का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, उससे आहारिकशरीर का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है, उससे औदारिकमिश्र और वैक्रियमिश्र इन दोनों का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है, और दोनों परस्पर तुल्य हैं । उससे असत्यामृषामनोयोग का जघन्य योग असंख्यातगुणा है । आहारकशरीर का जघन्य योग असंख्यातगुणा है । उससे तीन प्रकार का मनोयोग और चार प्रकार का वचनयोग, इन सातों का जघन्य योग असंख्यातगुणा है और परस्पर तुल्य है । उससे आहारकशरीर का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है, उससे औदारिकशरीर, वैक्रियशरीर, चार प्रकार का मनोयोग और चार प्रकार का वचनयोग, इन दस का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है और परस्पर तुल्य है । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है' । | शतक-२५ उद्देशक-२ | [८६६] भगवन् ! द्रव्य कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! दो प्रकार के जीवद्रव्य और अजीवद्रव्य । भगवन् ! अजीवद्रव्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के रूपी और अरूपी अजीवद्रव्य । इस प्रकार इस अभिलाप द्वारा प्रज्ञापनासूत्र के पांचवें पद में कथित अजीवपर्यवों के अनुसार, यावत्-हे गौतम ! इस कारण से कहा जाता है, कि अजीवद्रव्य संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं, किन्तु अनन्त हैं, तक जानना । [८६७] भगवन् ! क्या जीवद्रव्य संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं ? गौतम! जीवद्रव्य संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं, किन्तु अनन्त हैं । गौतम ! नैरयिक असंख्यात हैं, यावत् वायुकायिक असंख्यात हैं और वनस्पतिकायिक अनन्त हैं, द्वीन्द्रिय यावत् वैमानिक असंख्यात हैं तथा सिद्ध अनन्त हैं । इस कारण जीवद्रव्य अनन्त हैं ।
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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