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________________ भगवती-२५/-/१/८६१ २५३ (शतक-२५) [८६१] पच्चीसवें शतक के ये बारह उद्देशक हैं लेश्या, द्रव्य, संस्थान, युग्म, पर्यव, निर्ग्रन्थ, श्रमण, ओघ, भव्य, अभव्य, सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि । शतक-२५ उद्देशक-१ । [८६२] उस काल और उस समय में श्री गौतम स्वामी ने राजगृह में यावत् इस प्रकार पूछा-भगवन् ! लेश्याएँ कितनी कही गई हैं ? गौतम ! छह हैं । यथा कृष्णलेश्या आदि । शेष वर्णन प्रथम शतक के द्वितीय उद्देशक अनुसार यहाँ भी लेश्याओं का विभाग, उनका अल्पबहुत्व, यावत् चार प्रकार के देव और चार प्रकार की देवियों के मिश्रित अल्पबहत्व-पर्यन्त जानना चाहिए । [८६३] भगवन् ! संसारसमापनक जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! चौदह हैं । यथा-सूक्ष्म अपर्याप्तक, सूक्ष्म पर्याप्तक, बादर अपर्याप्तक, बादर पर्याप्तक, द्वीन्द्रिय अपर्याप्तक, द्वीन्द्रिय पर्याप्तक, त्रीन्द्रिय अपर्याप्तक, त्रीन्द्रिय पर्याप्तक, चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तकपर्याप्तक, असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक, असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक, संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक और संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक । भगवन् ! इन चौदह प्रकार के संसार-समापन्नक जीवों में जघन्य और उत्कृष्ट योग की अपेक्षा से, कौन जीव, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय का जघन्य योग सबसे अल्प है, बादर अपर्याप्तक एकेन्द्रिय का जघन्य योग उससे असंख्यातगुना है, उससे अपर्याप्त द्वीन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुना है, उससे अपर्याप्त त्रीन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुना है, उससे अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुना है, उससे अपर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुना है, उससे अपर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुना है, उससे पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुना है, उससे पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुना है, उससे अपर्याप्तक सूक्ष्म एकेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुना , उससे अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुना है, उससे पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुना है, उससे पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुना है, उससे पर्याप्त द्वीन्द्रिय का जघन्य योग असंख्यातगुना है, उससे पर्याप्त त्रीन्द्रिय, पर्याप्त चतुरिन्द्रिय, पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय और पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय का जघन्य योग उत्तरोत्तर असंख्यातगुना है, उससे अपर्याप्त द्वीन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुना है, इसी प्रकार उससे अपर्याप्त त्रीन्द्रिय, अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय, अपर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय और अपर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग उत्तरोत्तर असंख्यातगुना है, उससे पर्याप्त द्वीन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुना है, पर्याप्त त्रीन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुना है, उससे पर्याप्त चतुरिन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुना है, उससे पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुना है, और उससे भी पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुना है । [८६४] भगवन् ! प्रथम समय में उत्पन्न दो नैरयिक समयोगी होते हैं या विषमयोगी ? गौतम ! कदाचित् समयोगी होते हैं और कदाचित् विषमयोगी । भगवन् ! ऐसा क्यों कहा
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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