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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
| शतक-२४ उद्देशक-२ | [८४३] राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा-भगवन् ! असुरकुमार कहाँ से-किस गति से उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं । यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, तिर्यञ्चयोनिकों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते । नैरयिक उद्देशक अनुसार प्रश्न भगवन् ! पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक जीव, जो असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) रत्नप्रभापृथ्वी के समान नौ गमक कहने । विशेष यह है कि यदि वह स्वयं जघन्यकाल की स्थिति वाला हो, तो तीनों गमकों में अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं ।
__भगवन् ! यदि संज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक जीव असुरकुमारों में उत्पन्न हो तो क्या वह संख्यात वर्ष की आयु वाले से अथवा असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह दोनों प्रकार के तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होता है । भगवन् ! असंख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक जीव, कितने काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ।
भगवान् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वे जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं । वे वज्रकृषभनाराचसंहनन वाले होते हैं । उनकी अवगाहना जघन्य धनुषपृथक्त्व की और उत्कृष्ट छह गाऊ की होती है । वे समचतुरस्त्रसंस्थान वाले होते हैं । उनमें प्रारम्भ की चार लेश्याएँ होती हैं । वे केवल मिथ्यादृष्टि होते हैं । वे अज्ञानी होते हैं । नियम से दो अज्ञान होते हैं-मति-अज्ञान और श्रुतअज्ञान । योग तीनों ही पाये जाते हैं । उपयोग भी दोनों प्रकार के होते है । चार संज्ञा, चार कषाय, पांच इन्द्रियाँ तथा आदि के तीन समुद्घात होते हैं । वे समुद्घात करके भी मरते हैं
और समुद्घात किये बिना भी मरते हैं । उनमें साता और असाता दोनों प्रकार की वेदना होती है । वे स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी होते हैं, नपुंसकवेदी नहीं होते हैं । उनकी स्थिति जघन्य कुछ अधिक पूर्वकोटि वर्ष की और उत्कृ,ट तीन पल्योपम की होती है । उनके अध्यवसाय प्रशस्त भी और अप्रशस्त भी होते हैं । उनकी अनुबन्ध स्थिति के तुल्य होता है, कायसंवेध-भव की अपेक्षा से दो भव ग्रहण करते हैं, काल की अपेक्षा से जघन्य दस हजार वर्ष अधिक सातिरेक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट छह पल्योपम, इतने काल तक गमनागमन करते हैं । यदि वह जीव जघन्य काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हो तो इसकी वक्तव्यता पूर्वोक्तानुसार । विशेष असुरकुमारों की स्थिति और संवेध स्वयं जान लेना चाहिए । यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हो, तो वह जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है, इत्यादि पूर्ववत् । विशेष यह है कि उसकी स्थिति अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम होता है । काल की अपेक्षा से जघन्य और उत्कृष्ट