________________
भगवती-२०/-/१०/८०३
२०७
होते हैं ? गौतम ! दोनो । भगवन् ! नैरयिक सोपक्रम-आयुष्य वाले होते हैं, अथवा निरुपक्रमआयुष्य वाले ? गौतम ! वे निरुपक्रम-आयुष्य वाले होते हैं । इसी प्रकार स्तनितकुमारों-पर्यन्त (जानना) । पृथ्वीकायिकों का आयुष्य जीवों के समान जानना । इसी प्रकार मनुष्यों-पर्यन्त कहना चाहिए । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों नैरयिकों के समान है ।
[८०४] भगवन् ! नैरयिक जीव, आत्मोपक्रम से, परोक्रम से या निरुपक्रम से उत्पन्न होते हैं ? गौतम तीनो से । इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक कहना । भगवन् ! नैरयिक
आत्मोपक्रम से उद्वर्तते हैं अथवा परोपक्रम से या निरुपक्रम से उद्वर्तते हैं ? गौतम ! वे निरुपक्रम से उद्ववर्तित होते हैं | इसी प्रकार यावत स्तनितकुमारों पर्यन्त कहना चाहिए । पृथ्वीकायिकों से लेकर मनुष्यों तक का उद्वर्तन तीनों ही उपक्रमों से होता है । शेष सब जीवों का उद्धर्तन नैरयिकों के समान कहना चाहिए । विशेष यह है कि ज्योतिष्क एवं वैमानिक के लिए च्यवन करते हैं, (कहना चाहिए ।)
भगवन् ! नैरयिक जीव आत्मऋद्धि से उत्पन्न होते हैं या परकृद्धि से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे आत्मवृद्धि से उत्पन्न होते हैं, परकृद्धि से उत्पन्न नहीं होते । इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना चाहिए । भगवन् ! नैरयिक जीव आत्मवृद्धि से उद्धर्तित होते हैं या परकृद्धि से? गौतम ! वे आत्मवृद्धि से उद्धर्तित होते हैं । इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना । विशेष यह है कि ज्योतिष्क और वैमानिक के लिए 'च्यवन' कहना चाहिए ।)
भगवन् ! नैरयिक जीव अपने कर्म से उत्पन्न होते हैं या परकर्म से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे आत्मकर्म से उत्पन्न होते हैं, परकर्म से नहीं । इसी प्रकार वैमानिकों (तक कहना) । इसी प्रकार उद्धर्तना-दण्डक भी कहना । भगवन् ! नैरयिक जीव आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, अथवा परप्रयोग से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना । इसी प्रकार उद्वर्तना-दण्डक भी कहना ।
[८०५] भगवन् ! नैरयिक कतिसंचित हैं, अकतिसंचित हैं अथवा अवक्तव्यसंचित ? गौतम ! तीनों है । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा गया हैं ? गौतम ! जो नैरयिक संख्यात प्रवेश करते हैं, वे कतिसंचित हैं, जो नैरयिक असंख्यात प्रवेश करते हैं, वे अकतिसंचित हैं और जो नैरयिक एक-एक (करके) प्रवेश करते हैं, वे अवक्तव्यसंचित हैं । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक कहना चाहिए ।
भगवन् ! पृथ्वीकायिक कतिसंचित हैं, इत्यादि प्रश्न ? गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव कतिसंचित भी नहीं और अवक्तव्यसंचित भी नहीं किन्तु अकतिसंचित हैं । भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव एक साथ असंख्य प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, इसलिए कहा जाता है कि वे अकतिसंचित हैं । इसी प्रकार वनस्पतिकायिक तक (जानना) द्वीन्द्रियों से लेकर वैमानिकों पर्यन्त नैरयिकों के समान (कहना) ।
भगवन् ! सिद्ध कतिसंचित हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न | गौतम ! सिद्ध कतिसंचित और अवक्तव्यसंचित हैं, किन्तु अकतिसंचित नहीं हैं । भगवन् ! यह किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! जो सिद्ध संख्यातप्रवेशक से प्रवेश करते हैं, वे कतिसंचित हैं और जो सिद्ध एक-एक करके प्रवेश करते हैं, वे अवक्तव्यसंचित हैं ।