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________________ भगवती-१९/-/४/७६५ १८५ वाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या नैरयिक जीव महास्त्रव, महाक्रिया, महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसे होते हैं । भगवन् ! क्या नैरयिक जीव महास्त्रव, महाक्रिया, अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या नैरयिक महास्त्रव, महाक्रिया, अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । - भगवन् ! नैरयिक महास्त्रव, अल्पक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या नैरयिक महास्त्रव, अल्पक्रिया, महावेदना तथा अल्पनिर्जरा वाले होते हैं ? यह अर्थ भी समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या नैरयिक, महास्त्रव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना एवं महानिर्जरा वाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! नैरयिक महास्त्रव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले होते हैं ? यह अर्थ भी समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या नैरयिक अल्पास्त्रव, महाक्रिया, महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या नैरयिक अल्पास्त्रव, महाक्रिया, महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? यह अर्थ भी समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या नैरयिक अल्पास्त्रव, महाक्रिया, अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं ? गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या नैरयिक अल्पास्त्रव, महाक्रिया, अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या नैरयिक अल्पास्त्रव, अल्पक्रिया, महावेदन और महानिर्जरा वाले हैं ? यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या नैरयिक अल्पास्त्रव, अल्पक्रिया, महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! नैरयिक अल्पास्त्रव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना और महानिर्जरावाले होते हैं ? यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! नैरयिक कदाचित् अल्पास्त्रव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? यह अर्थ समर्थ नहीं है । ये सोलह भंग हैं । भगवन् ! क्या असुरकुमार महास्त्रव, महाक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इस प्रकार यहाँ केवल चतुर्थ भंग कहना चाहिए, शेष पन्द्रह भंगों का निषेध करना चाहिए । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक समझना चाहिए। भगवन् ! क्या पृथ्वीकायिक जीव कदाचित् महास्त्रव, महाक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा वाले होते हैं ? हाँ, गौतम ! कदाचित् होते हैं । भगवन् ! क्या इसी प्रकार पृथ्वीकायिक यावत् सोलहवें भंग-अल्पास्त्रव, अल्पक्रिया, अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले–कदाचित् होते हैं ? हाँ, गौतम ! वे कदाचित् सोलहवें भंग तक होते हैं । इसी प्रकार मनुष्यों तक जानना चाहिए । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिकों के विषय में असुरकुमारों के समान जानना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है' । | शतक-१९ उद्देशक-५ । [७६६] भगवन् ! क्या नैरयिक चरम (अल्पायुष्क) भी हैं और परम (अधिक आयुष्य वाले) भी हैं ? हाँ, गौतम ! हैं । भगवन् ! क्या चरम नैरयिकों की अपेक्षा परम नैरयिक महाकर्म वाले, महाक्रिया वाले, महास्त्रव वाले और महावेदना वाले हैं ? तथा परम नैरयिकों की अपेक्षा चरम नैरयिक अल्पकर्म, अल्पक्रिया, अल्पास्त्रव और अल्पवेदना वाले हैं ? हाँ, गौतम ! हैं ।
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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