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________________ १८४ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद सर्वबादर है, अग्निकाय ही बादरतर है । भगवन् ! पृथ्वीकाकयिक जीवों का शरीर कितना बड़ा कहा गया है । गौतम ! अनन्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवों के जितने शरीर होते हैं, उतना एक सूक्ष्म वायुकाय का शरीर होता है । असंख्यात सूक्ष्म वायुकायिक जीवों के जितने शरीर होते हैं, उतना एक सूक्ष्म अग्निकायका शरीर होता है । असंख्य सूक्ष्म अग्निकाय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक सूक्ष्म अप्काय का शरीर होता है । असंख्य सूक्ष्म अप्काय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक सूक्ष्म पृथ्वीकाय का शरीर होता है, असंख्य सूक्ष्म पृथ्वीकाय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक बादर वायुकाय का शरीर होता है । असंख्य बादर वायुकाय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक बादर अग्निकाय का शरीर होता है । असंख्य बादर अग्निकाय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक बादर अप्काय शरीर होता है । असंख्य बादर अप्काय समान एक बादर पृथ्वीकाय का शरीर होता है । हे गौतम! इतना बड़ा पृथ्वीका का शरीर होता है । [ ७६४] भगवन् ! पृथ्वीकाय के शरीर की कितनी बड़ी अवगाहना कही गई है ? गौतम ! जैसे कोई तरुणी, बलवती, युगवती, युगावय-प्राप्त, रोगरहित इत्यादि वर्णन युक्त यावत् कलाकुशल, चातुरन्त चक्रवर्ती राजा की चन्दन घिसने वाली दासी हो । विशेष यह है कि यहाँ चर्मेष्ट, द्रुघण, मौष्टिक आदि व्यायाम-साधनों से सुदृढ़ इत्यादि विशेषण नहीं कहना । ऐसी शिल्पनिपुण दासी, चूर्ण पीसने की वज्रमयी कठोर शिला पर, वज्रमय तीक्ष्ण लोढ़े से लाख के गोले के समान, पृथ्वीका का एक बड़ा पिण्ड लेकर बार-बार इकट्ठा करती और समेटती हुई - 'मैं अभी इसे पी डालती हूँ', यों विचार कर उसे इक्कीस बार पीस दे तो हे गौतम! कई पृथ्वीकायिक जीवों का उस शिला और लोढ़े से स्पर्श होता है और कई पृथ्वीकायिक जीवों का स्पर्श नहीं होता । उनमें से कई पृथ्वीकायिक जीवों का घर्षण होता है, और कई पृथ्वीकायिकों का घर्षण नहीं होता । उनमें से कुछ को पीड़ा होती है, कुछ को पीड़ा नहीं होती । उनमें से कई मरते हैं, कई नहीं मरते तथा कई पीसे जाते हैं और कई नहीं पीसे जाते । गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव के शरीर की इतनी बड़ी अवगाहना होती है । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव को आक्रान्त करने पर वह कैसी वेदना का अनुभव करता है ? गौतम ! जैसे कोई तरुण, बलिष्ठ यावत् शिल्प में निपुण हो, वह किसी वृद्धावस्था से जीर्ण, जराजर्जरित देह वाले यावत् दुर्बल, ग्लान के सिर पर मुष्टि से प्रहार करे तो उस पुरुष द्वारा मुक्का मारने पर वृद्ध कैसी पीड़ा का अनुभव करता है ? [गौतम - ] आयुष्मन् श्रमणप्रवर ! भगवन् ! वह वृद्ध अत्यन्त अनिष्ट पीड़ा का अनुभव करता है । (भगवान्) इसी प्रकार, हे गौतम! पृथ्वीकायिक जीव को आक्रान्त किये जाने पर, वह उस वृद्धपुरुष को होने वाली वेदना की अपेक्षा अधिक अनिष्टतर यावत् अमनामतर पीड़ा का अनुभव करता है । भगवन् ! अप्कायिक जीव को स्पर्श या घर्षण किये जाने पर वह कसी वेदना का अनुभव करता है ? गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के समान अकाय के जीवों को जानना । इसी प्रकार अग्निकाय, वायुकायिक एवं वनस्पतिकाय में जानना | भगवन् ! यह इसी प्रकार है' । शतक - १९ उद्देशक-४ [ ७६५] भगवन् ! क्या नैरयिक जीव महास्त्रव, महाक्रिया, महावेदना और महानिर्जरा
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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