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भगवती-१८/-/८/७५१
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भगवन् ! क्या आधोऽवधिक मनुष्य, परमाणुपुद्गल को जानता देखता है ? इत्यादि प्रश्न । छद्मस्थ मनुष्य अनुसार आधोऽवधिक मनुष्य के विषय में समझना चाहिए । इसी प्रकार यावत अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक कहना चाहिए | भगवन ! क्या परमावधिजानी मनुष्य परमाणुपुद्गल को जिस समय जानता है, उसी समय देखता है ? और जिस समय देखता है, उसी समय जानता है । गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! परमावधिज्ञानी का ज्ञान साकार होता है और दर्शन अनाकार होता है । इसलिए ऐसा कहा गया है कि यावत् जिस समय देखता है उस समय जानता नहीं । इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक कहना।
भगवन् ! क्या केवलीज्ञानी जिस समय परमाणुपुद्गल को जानता है, उस समय देखता है ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! परमावधिज्ञानी के समान केवलज्ञानी के लिए भी कहना । इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध । भगवन् ! यह इसी प्रकार है' ।
| शतक-१८ उद्देशक-९ । [७५२] राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवन् ! क्या भव्य-द्रव्य-नैरयिक भव्य-द्रव्यनैरयिक' है ? हाँ, गौतम ! है । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि भव्य-द्रव्य-नैरियक'भव्य-द्रव्य-नैरियक' है ? गौतम ! जो कोई पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक या मनुष्य नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य है, वह भव्य-द्रव्य-नैरयिक कहलाता है । इस कारण से ऐसा यावत् कहा गया है । इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त जानना चाहिए ।
भगवन् ! भव्य-द्रव्य-पृथ्वीकायिक भव्य-द्रव्य-पृथ्वीकायिक है ? हाँ, गौतम ! है । भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं ? गौतम ! जो तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य अथवा देव पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने के योग्य है, वह भव्य-द्रव्य-पृथ्वीकायिक कहलाता है । इसी प्रकार अप्कायिक और वनस्पतिकायिक के विषय में समझना । अग्निकाय, वायुकाय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय पर्याय में जो कोई तिर्यञ्च या मनुष्य उत्पन्न होने के योग्य हो, वह भव्य-द्रव्य-अग्निकायिकादि कहलाता है । जो कोई नैरयिक, तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य या देव, अथवा पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक जीव, पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होने योग्य होता है, वह भव्य-द्रव्य-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक कहलाता है । इसी प्रकार मनुष्यों के विषय में (समझ लेना ।) वाणव्यन्तर, ज्योतिषिक और वैमानिकों के विषय में नैरयिकों के समान जानना ।
भगवन् ! भव्य-द्रव्य-नैरयिक की स्थिति कितने काल की कही गई है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष की कही गई है । भगवन् ! भव्य-द्रव्य-असुरकुमार की स्थिति कितने काल की कही गई है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की कही गई है । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना चाहिए ।
___ भगवन् ! भव्य-द्रव्य-पृथ्वीकायिक की स्थिति कितने काल की कही है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक दो सागरोपम की कही गई है । इसी प्रकार अप्कायिक की स्थिति जानना । भव्य-द्रव्य-अग्निकायिक एवं भव्य-द्रव्य-वायुकायिक की स्थिति नैरयिक के समान है । वनस्पतिकायिक की स्थिति पृथ्वीकायिक के समान है । (भव्य-द्रव्य-) द्वीन्द्रियत्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय की स्थिति भी नैरयिक के समान जानना । (भव्य-द्रव्य-) पंचेन्द्रिय
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