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भगवती - १८/-/६/७४०
तोते की पांखें कितने वर्ण वाली हैं ? गौतम ! व्यावहारिक नय से तोते की पांखें हरे रंग की हैं और नैश्चयिक नय से पांच वर्ण वाली इत्यादि पूर्ववत् ।
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इसी प्रकार इसी अभिलाप द्वारा, मजीठ लाल है; हल्दी पीली है; शंख शुक्ल है, कुष्ठपटवास सुरभिगन्ध वाला है, मृतकशरीर दुर्गन्धित है, नीम कड़वा है, सूंठ तीखी है, कपित्थ कसैला है, इमली खट्टी है; खांड मधुर है; वज्र कर्कश हैं, नवनीत मृदु है, लोहे भारी है; उलुकपत्र हल्का है, हिम ठंडा है, अग्निकाय उष्ण है, तेल स्निग्ध है । किन्तु नैश्चयिक नय से इन सब में पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और आठ स्पर्श हैं । भगवन् ! राख कितने वर्ण वाली है ?, इत्यादि प्रश्न ? गौतम ! व्यावहारिक नय से राख रूक्ष स्पर्श वाली है और नैश्चयिक नय से राख षांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और आठ स्पर्श वाली है ।
[ ७४१] भगवन् ! परमाणुपुद्गल कितने वर्ण वाला यावत् कितने स्पर्शवाला कहा गया है ? गौतम ! वह एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और दो स्पर्श वाला कहा है । भगवन् ! प्रदेशिक स्कन्ध कितने वर्ण आदि वाला है ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वह कदाचित् एक वर्ण, कदाचित् दो वर्ण, कदाचित् एक गन्ध या दो गन्ध, कदाचित् एक रस दो रस, कदाचित् दो स्पर्श, तीन स्पर्श और कदाचित् चार स्पर्श वाला कहा गया है । इसी प्रकार त्रिप्रदेशी स्कन्ध के विषय में भी जानना चाहिए । विशेष बात यह है कि वह कदाचित् एक वर्ण, कदाचित् दो वर्ण और कदाचित् तीन वर्ण वाला होता है । इसी प्रकार रस के विषय में भी; यावत् तीन रस वाला होता है । इसी प्रकार चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के विषय में भी जानना चाहिए । विशेष यह है कि वह कदाचित् एक वर्ण, यावत् कदाचित् चार वर्ण वाला होता है । इसी प्रकार रस के विषय में है । शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार पंचप्रदेशी स्कन्ध के विषय में भी जानना चाहिए । विशेष यह है कि वह कदाचित् एक वर्ण, यावत् कदाचित् पांच वर्ण वाला होता है । इसी प्रकार रस के विषय में है, गन्ध और स्पर्श के विषय में भी पूर्ववत् । पंचप्रदेशी स्कन्ध के समान यावत् असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध तक कहना ।
भगवन् ! सूक्ष्मपरिणाम वाला अनन्तप्रदेशी स्कन्ध कितने वर्ण वाला होता है ?, इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न | पंचप्रदेशी स्कन्ध के अनुसार समग्र कथन करना चाहिए । भगवन् ! बादर परिणाम वाला अनन्तप्रदेशी स्कन्ध कितने वर्ण, गन्ध आदि वाला है ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वह कदाचित् एक वर्ण, यावत् कदाचित् पाँच वर्ण वाला, कदाचित् एक गन्ध या दो गन्ध वाला; कदाचित् एक रस यावत् पांच रस वाला, तथा चार स्पर्श यावत् कदाचित् आठ स्पर्श वाला होता हैं । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
शतक- १८ उद्देशक - ७
[७४२] राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं कि केवली यक्षावेश से आविष्ट होते हैं और जब केवली यक्षावेश से आविष्ट होते हैं तो वे कदाचित् दो प्रकार की भाषाएँ बोलते हैं - मृषाभाषा और सत्या मृषा भाषा । तो हे भगवन् ! ऐसा कैसे हो सकता है ? गौतम ! अन्यतीर्थिकों ने यावत् जो इस प्रकार कहा है, वह उन्होंने मिथ्या कहा है । हे गौतम! मैं इस प्रकार कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा करता हूँ । केवली न तो कदापि यक्षाविष्ट होते हैं, और न ही कभी मृषा और सत्या मृषा इन दो भाषाओं को बोलते