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भगवती-१८/-/४/७३४
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भगवन् ! क्या स्त्रियाँ कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वे जघन्यपद में कृतयुग्म और उत्कृष्टपद में भी कृतयुग्म हैं, किन्तु अजघन्योत्कृष्टपद में कदाचित् कृतयुग्म हैं और यावत् कदाचित् कल्यो हैं । असुरकुमारों की स्त्रियों से लेकर स्तनितकुमार - स्त्रियों तक इसी प्रकार (समझना चाहिए ।) तिर्यञ्चयोनिक स्त्रियों, मनुष्य स्त्रियों एवं वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की देवियों के विषय के भी इसी प्रकार ( कहना चाहिए ।)
[ ७३५] भगवन् ! जितने अल्प आयुष्य वाले अन्धकवह्नि जीव हैं, उतने ही उत्कृष्ट आयुष्य वाले अन्धकवह्नि जीव हैं ? हाँ, गौतम ! जितने अल्पायुष्क अन्धकवह्नि जीव हैं, उतने ही उत्कृष्टायुष्क अन्धकवह्नि जीव हैं । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
शतक - १८ उद्देशक - ५
[७३६] भगवन् ! दो असुरकुमारदेव, एक ही असुरकुमारावास में असुरकुमारदेवरूप में उत्पन्न हुए । उनमें से एक असुरकुमारदेव प्रासादीय, दर्शनीय, सुन्दर और मनोरम होता है, जबकि दूसरा असुरकुमारदेव न तो प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला होता है, न दर्शनीय, सुन्दर और मनोरम होता है, भगवन् ऐसा क्यों होता है ? गौतम ! असुरकुमारदेव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथावैक्रशरीर वाले और अवैक्रियशरीर वाले । उनमें से जो वैक्रियशरीर वाले असुरकुमारदेव होते हैं, वे प्रासादीय, दर्शनीय, सुन्दर और मनोरम होते हैं, किन्तु जो अवैक्रियशरीर वाले हैं, वे प्रसन्नता उत्पन्न करने वाले यावत् मनोरम नहीं होते ।
भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं कि वैक्रियशरीर वाले देव प्रसन्नता - उत्पादक यावत् मनोरम होते हैं, अवैक्रियशरीर वाले नहीं होते हैं ? गौतम ! जैसे, इस मनुष्यलोक में दो पुरुष हों, उनमें से एक पुरुष आभूषणों से अलंकृत और विभूषित हो और एक पुरुष अलंकृत और विभूषित न हो, तो हे गौतम ! उन दोनों पुरुषों में कौन-सा पुरुष प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला, यावत् मनोरम्य लगता है और कौन-सा प्रसन्नता उत्पादक यावत् मनोरम्य नहीं लगता ? जो पुरुष अलंकृत और विभूषित है, वह अथवा जो पुरुष अलंकृत और विभूषित नहीं है वह ? ( गौतम - ) भगवन् ! उन दोनों में से जो पुरुष अलंकृत और विभूषित है, वही प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला यावत् मनोरम्य है, और जो पुरुष अलंकृत और विभूषित नहीं है, वह प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला, यावत् मनोरम्य नहीं हैं । भगवन् ! दो नागकुमारदेव एक नागकुमारावास में उत्पन्न हुए इत्यादि प्रश्न ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक तथा वाणव्यन्तर ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के विषय में भी जानना ।
[७३७] भगवन् ! दो नैरयिक एक ही नरकावास में नैरयिकरूप से उत्पन्न हुए । उनमें से एक नैरयिक महाकर्म वाला यावत् महावेदना वाला और एक नैरयिक अल्पकर्मवाला यावत् अल्पवेदना वाला होता है, तो भगवन् ! ऐसा क्यों होता है ? गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-मायमिथ्यादृष्टि - उपपन्नक और अमायिसम्यग्दृष्टि - उपपन्नक । इनमें से जो मायिमिथ्यादृष्टि-उ - उपपन्नक नैरयिक है वह महाकर्म वाला यावत् महावेदना वाला है, और उनमें जो अमायिसम्यग्दृष्टि-उपपन्नक नैरयिक है, वह अल्पकर्म वाला यावत् अल्पवेदना वाला होता है । भगवन् ! दो असुरकुमारों के महाकर्म- अल्पकर्मादि विषयक प्रश्न ? हे गौतम! यहाँ भी पूर्ववत् । इसी प्रकार एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिकों तक समझना ।