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भगवती-१७/-/१२/७१५
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गई हैं । यथा-कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या ।
भगवन् ! कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या वाले एकेन्द्रिय में कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े एकेन्द्रिय जीव तेजोलेश्या वाले हैं, उनसे कापोतलेश्या वाले
अनन्तगुणे हैं, उनसे नीललेश्या वाले विशेषाधिक हैं और उनसे कृष्णलेश्या वाले एकेन्द्रिय विशेषाधिक हैं । भगवन् ! इन कृष्णलेश्या वालों से लेकर यावत् तेजोलेश्या वाले एकेन्द्रियों में कौन अल्प ऋद्धि वाला है और कौन महाकृद्धि वाला है ? गौतम ! द्वीपकुमारों की कृति अनुसार एकेन्द्रियों में भी कहना चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
| शतक-१७ उद्देशक-१३ | [७१६] भगवन् ! क्या सभी नागकुमार समान आहार वाले हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! जैसे सोलहवें शतक के द्वीपकुमार उद्देशक में कहा है, उसी प्रकार सब कथन, ऋद्धि तक कहना चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
| शतक-१७ उद्देशक-१४ । [७१७] भगवन् ! क्या सभी सुवर्णकुमार समान आहार वाले हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! पूर्ववत् । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
| शतक-१७ उद्देशक-१५ | [७१८] भगवन् ! क्या सभी विद्युत्कुमार देव समान आहार वाले हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! पूर्ववत् । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
| शतक-१७ उद्देशक-१६ । [७१९] भगवन् ! क्या सभी वायुकुमार समान आहार वाले हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । (गौतम !) पूर्ववत् । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
|शतक-१७ उद्देशक-१७ | [७२०] भगवन् ! क्या सभी अग्निकुमार समान आहार वाले हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । (गौतम !) पूर्ववत् । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक-१७ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(शतक-१८) [७२१] अठारहवें शतक में दस उद्देशक हैं । यथा-प्रथम, विशाखा, माकन्दिक, प्राणातिपात, असुर, गुड़, केवली, अनगार, भाविक तथा सोमिल ।
शतक-१८ उद्देशक-१ | [७२२] उस काल और उस समय में राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवन् ! जीव, जीवभाव से प्रथम है, अथवा अप्रथम है ? गौतम ! प्रथम नहीं, अप्रथम है । इस प्रकार नैरयिक से लेकर वैमानिक तक जानना । भगवन् ! सिद्ध-जीव, सिद्धभाव की अपेक्षा से प्रथम है या