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________________ १५८ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद शतक- १७ उद्देशक- ८ [७११] भगवन् ! जो अप्कायिक जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी में मरण-समुद्घात करके सौधर्मकल्प में अप्कायिक रूप में उत्पन्न होने के योग्य हैं...इत्यादि प्रश्न ? गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के अनुसार अकायिक जीवों के विषय में सभी कल्पों में यावत् ईषत्प्राग्भारापृथ्वी तक उत्पाद कहना चाहिए । रत्नप्रभापृथ्वी के अप्कायिक जीवों के उत्पाद के समान यावत् अधः सप्तमपृथ्वी के अप्कायिक जीवों तक का यावत् ईषत्प्राग्भारापृथ्वी तक उत्पाद जानना चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक- १७ उद्देशक- ९ [७१२ ] भगवन् ! जो अप्कायिक जीव, सौधर्मकल्प में मरण-समुद्घात करके इस रत्नप्रभा पृथ्वी के घनोदधिवलयों में अप्कायिक रूप से उत्पन्न होने के योग्य हैं,... इत्यादि प्रश्न ? गौतम ! शेष सभी पूर्ववत् । जिस प्रकार सौधर्मकल्प के अप्कायिक जीवों का नरक - पृथ्वीयों में उत्पाद कहा, उसी प्रकार ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक के अप्कायिक जीवों का उत्पाद अधः सप्तम पृथ्वी तक जानना चाहिए । भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक- १७ उद्देशक- १० [७१३] भगवन् ! जो वायुकायिक जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी में मरण - समुद्घात करके सौधर्मकल्प में वायुकायिक रूप में उत्पन्न होने के योग्य हैं, इत्यादि प्रश्न । गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के समान वायुकायिक जीवों का भी कथन करना चाहिए । विशेषता यह है कि वायुकायिक जीवों में चार समुद्घात कहे गए हैं, यथा-वेदनासमुद्घात यावत् वैक्रियसमुद्घात । वे वायुकायिक जीव मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत हो कर देश से समुद्घात करते हैं, इत्यादि सब पूर्ववत् यावत् अधः सप्तमपृथ्वी में समुद्घात कर... । वायुकायिक जीवों का उत्पाद ईषत्प्राग्भारापृथ्वी तक जानना चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक - १७ उद्देशक - ११ [ ७१४] भगवन् ! जो वायुकायिक जीव, सौधर्मकल्प में समुद्धात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी के घनवात, तनुवात, घनवातवलयों और तनुवातवलयों में वायुकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य हैं... इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न ? गौतम ! शेष सब पूर्ववत् कहना चाहिए । जिस प्रकार सौधर्मकल्प के वायुकायिक जीवों- का उत्पाद सातों नरकपृथ्वीयों में कहा, उसी प्रकार ईषत्प्राग्भारापृथ्वी तक के वायुकायिक जीवों का उत्पाद अधः सप्तमपृथ्वी तक जानना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक - १७ उद्देशक - १२ [७१५] भगवन् ! क्या सभी एकेन्द्रिय जीव समान आहार वाले हैं ? सभी समान शरीर वाले हैं इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! प्रथम शतक के द्वितीय उद्देशक में पृथ्वीकायिक जीवों के अनुसार यहाँ एकेन्द्रिय जीवों के विषय में कहना चाहिए । भगवन् ! एकेन्द्रिय जीवों में कितनी लेश्याएँ कही गई हैं ? गौतम ! चार लेश्याएँ कही
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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