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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
एक लाख योजन है । शेष पूर्ववत् यावत् बलिपीठ तथा उपपात से लेकर यावत् आत्मरक्षक तक सभी बातें पूर्ववत् । विशेषता यह है कि (बलि-वैरोचनेन्द्र की) स्थिति सागरोपम से कुछ अधिक की कही गई है । यावत् 'वैरोचनेन्द्र बलि है, वैरोचनेन्द्र बलि है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
| शतक-१६ उद्देशक-१० | [६८८] भगवन् ! अवधिज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! दो प्रकार का । यहाँ अवधिपद सम्पूर्ण कहना चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
| शतक-१६ उद्देशक-११ [६८९] भगवन् ! सभी द्वीपकुमार समान आहार और समान निःश्वास वाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । प्रथम शतक के द्वितीय उद्देशक में द्वीपकुमारों के अनुसार कितने ही समआयुष्य वाले और सम-उच्छ्वास-निःश्वास वाले होते हैं, तक कहना चाहिए । भगवन् ! द्वीपकुमारों में कितनी लेश्याएँ हैं ? चार कृष्ण यावत् तेजो।
भगवन् ! कृष्णलेश्या से लेकर तेजोलेश्या वाले द्वीपकुमारों में कौन किससे यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे कम द्वीपकुमार तेजोलेश्या वाले हैं | कापोतलेश्या वाले उनसे असंख्यातगुणे हैं । उनसे नीललेश्या वाले और उनसे कृष्णलेश्या वाले विशेषाधिक हैं । कृष्णलेश्या से लेकर यावत् तेजोलेश्या वाले द्वीपकुमारों में कौन किससे अल्पर्द्धिक हैं अथवा महर्द्धिक हैं ? कृष्णलेश्या वाले द्वीपकुमारों से नीललेश्या वाले द्वीपकुमार महर्द्धिक हैं; यावत् तेजोलेश्या वाले द्वीपकुमार सभी से महर्द्धिक हैं । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
| शतक-१६ उद्देशक-१२ । [६९०] भगवन् ! सभी उदधिकुमार समान आहावाले हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम! पूर्ववत् कहनी चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! इसी प्रकार है ।
| शतक-१६ उद्देशक-१३ | [६९१द्वीपकुमारों के अनुसार दिशाकुमारों विषय में भी कहना चाहिए ।
| शतक-१६ उद्देशक-१४ | [६९२] द्वीपकुमारों के अनुसार स्तनितकुमारों के विषय में भी कहना चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है। शतक-१६ का मुनिदीपरत्नसागर कृत हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(शतक-१७ [६९३] भगवती श्रुतदेवता को नमस्कार हो ।
[६९४] (सत्तरहवें शतक में) सत्तरह उद्देशक हैं । कुञ्जर, संयत, शैलेशी, क्रिया, ईशान, पृथ्वी, उदक, वायु, एकेन्द्रिय, नाग, सुवर्ण, विद्युत्, वायुकुमार और अग्निकुमार ।
| शतक-१७ उद्देशक-१ | [६९५] राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवन् ! उदायी नामक प्रधान हस्तिराज, किस