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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
| शतक-१६ उद्देशक-७ । [६८२] भगवन् ! उपयोग कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का । प्रज्ञापनासूत्र का उपयोग पद तथा पश्यत्तापद कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
| शतक-१६ उद्देशक-८ | [६८३] भगवन् ! लोक कितना विशाल कहा गया है ? गौतम ! लोक अत्यन्त विशाल कहा गया है । इसकी समस्त वक्तव्यता बारहवें शतक अनुसार कहना।।
भगवन् ! क्या लोक के पूर्वीय चरमान्त में जीव हैं, जीवदेश हैं, जीवप्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीव के देश हैं और अजीव के प्रदेश हैं ? गौतम ! वहाँ जीव नहीं हैं, परन्तु जीव के देश हैं, जीव के प्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीव के देश हैं और अजीव के प्रदेश भी हैं । वहाँ जो जीव के देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं, अथवा एकेन्द्रिय जीवों के देश और द्वीन्द्रिय जीव का एक देश है । इत्यादि सब भंग दसवें शतक के में कथित आग्नेयी दिशा अनुसार जानना । विशेषता यह है कि 'बहुत देशों के विषय में अनिन्द्रियों से सम्बन्धित प्रथम भंग नहीं कहना, तथा वहाँ जो अरूपी अजीव हैं, वे छह प्रकार के कहे गए हैं । वहाँ काल नहीं है । भगवन् ! क्या लोक के दक्षिणी चरमान्त में जीव हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार पश्चिमी और उत्तरी चरमान्त समझना।
भगवन् ! लोक के उपरिम चरमान्त में जीव हैं, इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! वहाँ जीव नहीं हैं, किन्तु जीव के देश हैं, यावत् अजीव के प्रदेश भी हैं । जो जीव के देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रियों के देश और अनिन्द्रियों के देश हैं । अथवा एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के देश तथा द्वीन्द्रिय का एक देश है, अथवा एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के देश तथा द्वीन्द्रियों के देश हैं । इस प्रकार बीच के भंग को छोड़ कर द्विकसंयोगी सभी भंग यावत् पंचेन्द्रिय तक कहना चाहिए । यहाँ जो जीव के प्रदेश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रियों के प्रदेश हैं और अनिन्द्रियों के प्रदेश हैं । अथवा एकेन्द्रियों के प्रदेश, अनिन्द्रियों के प्रदेश और एक द्वीन्द्रिय के प्रदेश हैं । अथवा एकेन्द्रियों के और अनिन्द्रियों के प्रदेश तथा द्वीन्द्रियों के प्रदेश हैं । इस प्रकार प्रथम भंग के अतिरिक्त शेष सभी भंग यावत् पंचेन्द्रियों तक कहना । दशवें शतक में कथित तमादिशा अनुसार यहाँ पर अजीवों को कहना | भगवन् ! क्या लोक के अधस्तन चरमान्त में जीव हैं ? गौतम ! वहाँ जीव नहीं हैं, किन्तु जीव के देश हैं, यावत् अजीव के प्रदेश भी हैं । जो जीव के देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रियों के देश हैं, अथवा एकेन्द्रियों के देश और द्वीन्द्रिय का एक देश है । अथवा एकेन्द्रियों के देश और द्वीन्द्रियों के देश हैं । इस प्रकार बीच के भंग को छोड़कर शेष भंग, यावत्अनिन्द्रियों तक कहना । सभी प्रदेशों के विषय में आदि के भंग को छोड़कर पूर्वीय-चरमान्त के अनुसार कहना । अजीवों के विषय में उपरितन चरमान्त के समान जानना।
भगवन् ! क्या इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वीय चरमान्त में जीव हैं ? गौतम ! वहाँ जीव नहीं हैं । लोक के चार चरमान्तों के समान रत्नप्रभापृथ्वी के चार चरमान्तों के विषय में यावत् उत्तरीय चरमान्त तक कहना चाहिए । रत्नप्रभा के उपरितन चरमान्त के विषय में, दसवें शतक में विमला दिशा के समान कहना । रत्नप्रभापृथ्वी के अधस्तन चरमान्त की वक्तव्यता लोक के अधस्तन चरमान्त के समान कहना । विशेषता यह है कि जीवदेश के विषय में पंचेन्द्रियों के तीन भंग