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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
तक कहना चाहिए ।
भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म को वेदता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? गौतम ! आठ कर्मप्रकृतियों को वेदता है । यहाँ प्रज्ञापनासूत्र के 'वेद-वेद' नामक पद में कथित समग्र कथन करना चाहिए । वेद-बन्ध, बन्ध-वेद और बन्ध-बन्ध उद्देशक भी, यावत् वैमानिकों तक कहना चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
[६७१] किसी समय एक दिन श्रमण भगवान् महावीर राजगृहनगर के गुणशीलक नामक उद्यान से निकले और बाहर के (अन्य) जनपदों में विहार करने लगे । उस काल उस समय में उल्लूकतीर नाम का नगर था । (वर्णन) उस उल्लूकतीर नगर के बाहर ईशानकोण में “एकजम्बूक' उद्यान था । एक वार किसी दिन श्रमण भगवान् महावीर स्वामी अनुक्रम से विचरण करते हुए यावत् 'एकजम्बूक' उद्यान में पधारे । यावत् परिषद् लौट गई।
गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दन नमस्कार किया और पूछाभगवनान् !निरन्तर छठ-छठ के तपश्चरण के साथ यावत् आतापना लेते हुए भावितात्मा अनगार को दिवस के पूर्वार्द्ध में अपने हाथ, पैर, बांह या ऊरु को सिकोड़ना या पसारना कल्पनीय नहीं है, किन्तु दिवस के पश्चिमार्द्ध में अपने हाथ, पैर या यावत् उरु को सिकोड़ना का फैलाना कल्पनीय है । इस प्रकार कायोत्सर्गस्थित उस भावितात्मा अनगार की नासिका में अर्श लटक रहा हो । उस अर्श को किसी वैद्य ने देखा और यदि वह वैद्य उस अर्श को काटने के लिए उस कृषि को भूमि पर लिटाए, फिर उसके अर्श को काटे; तो हे भगवन् ! क्या जो वैद्य अर्श काटता है, उसे क्रिया लगती है ? तथा जिस (अनगार) का अर्श काटा जा रहा है, उसे एक मात्र धर्मान्तरायिक क्रिया के सिवाय दूसरी क्रिया तो नहीं लगती ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
| शतक-१६ उद्देशक-४ । [६७२] राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवन् ! अन्नग्लायक श्रमण निर्ग्रन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है, क्या उतने कर्म नरकों में नैरयिक जीव एक वर्ष में, अनेक वर्षों में अथवा सौ वर्षों में क्षय कर देते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं ।
भगवन् ! चतुर्थ भक्त करने वाले श्रमण-निर्ग्रन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है, क्या उतने कर्म नरकों से नैरयिक जीव सौ वर्षों में, अनेक सौ वर्षों में या एक हजार वर्षों में खपाते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं | भगवन् ! षष्ठभक्त करने वाला श्रमण निर्ग्रन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है, क्या उतने कर्म नरकों में नैरयिक जीव एक हजार वर्षों में, अनेक हजार वर्षों में, अथवा एक लाख वर्षों में क्षय कर पाता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं । भगवन् ! अष्टमभक्त करने वाला श्रमण निर्ग्रन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है, क्या उतने कर्म नरकों में नैरयिक जीव एक लाख वर्षों में, अनेक लाख वर्षों में या एक करोड़ वर्षों में क्षय कर पाता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं । भगवन् ! दशमभक्त करने वाला श्रमण निर्ग्रन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है, क्या उतने कर्म नरकों में नैरयिक जीव, एक करोड़ वर्षों में, अनेक करोड़ वर्षों में या कोटाकोटी वर्षों में क्षय कर पाता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! जैसे कोई वृद्ध पुरुष है । वृद्धावस्था के कारण उसका शरीर