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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
से देवों और देवियों ने उस तामली बालतपस्वी की फिर दाहिनी ओर से तीन बार प्रदक्षिणा करके दूसरी बार, तीसरी बार पूर्वोक्त बात कही कि हे देवानुप्रिय ! हमारी बलिचंचा राजधानी इन्द्रविहीन और पुरोहितरहित है, यावत् आप उसके स्वामी बनकर वहाँ स्थिति करने का संकल्प करिये ।' उन असुरकुमार देव-देवियों द्वारा पूर्वोक्त बात दो-तीन बार यावत् दोहराई जाने पर भी तामली मौर्यपुत्र ने कुछ भी जवाब न दिया यावत् वह मौन धारण करके बैठा रहा । तत्पश्चात् अन्त में जब तामली बालतपस्वी के द्वारा बलिचंचा राजधानी-निवासी उन बहुतसे असुरकुमार देवों और देवियों का अनादर हुआ, और उनकी बात नहीं मानी गई, तब वे (देव-देवीवृन्द) जिस दिशा से आए थे, उसी दिशा में वापस चले गए ।
[१६२] उस काल और उस समय में ईशान देवलोक इन्दविहीन और पुरोहितरहित भी था । उस समय ऋषि तामली बालतपस्वी, पूरे साठ हजार वर्ष तक तापस पर्याय का पालन करके, दो महीने की संलेखना से अपनी आत्मा को सेवित करके, एक सौ बीस भक्त अनशन में काट कर काल के अवसर पर काल करके ईशान देवलोक के ईशावतंसक विमान में उपपातसभा की देवदूष्य-वस्त्र से आच्छादित देवशय्या में अंगुल के असंख्येय भाग जितनी अवगाहना में, ईशान देवलोक के इन्द्र के विरहकाल में ईशानदेवेन्द्र के रूप में उत्पन्न हुआ । तत्काल उत्पन्न वह देवेन्द्र देवराज ईशान, आहारपर्याप्ति से लेकर यावत् भाषा-मनःपर्याप्ति तक, पंचविधि पर्याप्तियों से पर्याप्ति भाव को प्राप्त हआ--पर्याप्त हो गया ।
उस समय बलिचंचा-राजधानी के निवासी बहुत-से असुरकुमार देवों और देवियों ने जब यह जाना कि तामली बालतपस्वी कालधर्म को प्राप्त हो गया है और ईशानकल्प में वहाँ के देवेन्द्र के रूप में उत्पन्न हुआ है, तो यह जानकर वे एकदम क्रोध से मूढ़मति हो गए, अथवा शीघ्र क्रोध से भड़क उठे, वे अत्यन्त कुपित हो गए, उनके चेहरे क्रोध से भयंकर उग्र हो गए वे क्रोध की आग से तिलमिला उठे और तत्काल वे सब बलिचंचा राजधानी के बीचोंबीच होकर निकले, यावत् उत्कृष्ट देवगति से इस जम्बूद्वीप में स्थित भरतक्षेत्र की ताम्रलिप्ती नगरी के बाहर, जहाँ तामली बालतपस्वी का शब (पड़ा) था वहाँ आए । उन्होंने (तामली बालतपस्वी के मृत शरीर के) बाएँ पैर को रस्सी से बांधा, फिर तीन बार उसके मुख में थूका । तत्पश्चात् ताम्रलिप्ती नगरी के श्रृंगाटकों-त्रिकोण मार्गों में, चौकों में, प्रांगण में, चतुर्मुख मार्ग में तथा महामार्गों में; उसके मृतशरीर को घसीटा; अथवा इधर-उधर खींचतान की और जोरजोर से चिल्लाकर उद्घोषणा करते हुए इस प्रकार कहने लगे-'स्वयमेव तापस का वेष पहन कर 'प्राणामा' प्रव्रज्या अंगीकार करने वाला यह तामली बालतपस्वी हमारे सामने क्या है ? तथा ईशानकल्प में उत्पन्न हुआ देवेन्द्र देवराज ईशान भी हमारे सामने कौन होता है ?' यों कहकर वे उस तामली बालतपस्वी के मृत शरीर की हीलना, निन्दा करते हैं, उसे कोसते हैं, उसकी गर्दा करते हैं, उसकी अवमानना, तर्जना और ताड़ना करते हैं । उसकी कदर्थना और भर्त्सना करते हैं, अपनी इच्छानुसार उसे इधर-उधर घसीटते हैं । इस प्रकार उस शब की हीलना यावत् मनमानी खींचतान करके फिर उसे एकान्त स्थान में डाल देते हैं । फिर वे जिस दिशा से आये थे, उसी दिशा में वापस लौट गए ।
[१६३] तत्पश्चात् ईशानकल्पवासी बहुत-से वैमानिक देवों और देवियों ने (इस प्रकार) देखा कि बलिचंचा-राजधानी-निवासी बहुत-से असुरकुमार देवों और देवियों द्वारा तामली