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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
ऋद्धिवाला है, यावत् ऐसा महान् प्रभावशाली है कि वह चौंतीस लाख भवनावासों आदि पर आधिपत्य - स्वामित्व करता हुआ विचरता है ।' तो हे भगवन् ! यह बात कैसे है ?"
'हे गौतम !' इस प्रकार सम्बोधन करके श्रमण भगवान् महावीर ने तृतीय गौतम वायुभूति अनगग से इस प्रकार कहा - 'हे गौतम ! द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार ने तुम से जो इस प्रकार कहा, भाषित किया, बतलाया और प्ररूपित किया कि 'हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर ऐसी महाऋद्धि वाला है; इत्यादि हे गौतम ! यह कथन सत्य है । हे गौतम! मैं भी इसी तरह कहता हूँ, भाषण करता हूँ, बतलाता हूँ और प्ररूपित करता हूँ कि असुरेन्द्र असुरराज चमर महाऋद्धिशाली है, इत्यादि (इसलिए हे गौतम !) यह बात सत्य है ।' 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
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तृतीय गौतम वायुभूति अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार किया, और फिर जहाँ द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार थे, वहाँ उनके निकट आए । वहाँ आकर द्वितीय गौतम अग्रभूति अनगार को वन्दन- नमस्कार किया और पूर्वोक्त बात के लिए उनसे सम्यक् विनयपूर्वक बार-बार क्षमायाचना की । तदनन्तर द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार उस पूर्वोक्त बात के लिए तृतीय गौतम वायुभूति के साथ सम्यक् प्रकार से विनयपूर्वक क्षमायाचना कर लेने पर अपने उत्थान से उठे और तृतीय गौतम वायुभूति अनगार के साथ वहाँ आए, जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे । वहाँ उनके निकट आकर उन्हें (श्रमण भगवान् महावीर को) वन्दन - नमस्कार किया, यावत् उनकी पर्युपासना करने लगे ।
[१५५] इसके पश्चात् तीसरे गौतम ( - गोत्रीय) वायुभूति अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना - नमस्कार किया, और फिर यों बोले-'भगवन् ! यदि असुरेन्द्र असुरराज चमर इतनी बड़ी ऋद्धि वाला है, यावत् इतनी विकुर्वणाशक्ति से सम्पन्न है, तब हे भगवन् ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि कितनी बड़ी ऋद्धि वाला है ? यावत् वह कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है ?' गौतम ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि महाऋद्धिसम्पन्न है, यावत् महानुभाग है । वह वहाँ तीस लाख भवनावासों का तथा साठ हजार सामानिक देवों का अधिपति है । चमरेन्द्र के समान बलि के विषय में भी शेष वर्णन जान लेना । अन्तर इतना ही है कि बलि वैरोचनेन्द्र दो लाख चालीस हजार आत्मरक्ष देवों का तथा अन्य बहुत-से ( उत्तरदिशावासी असुरकुमार देवदेवियों का) आधिपत्य यावत् उपभोग करता हुआ विचरता है । चमरेन्द्र की विकुर्वणाशक्ति की तरह बलीन्द्र के विषय में भी युवक युवती का हाथ दृढ़ता से पकड़ कर चलता है, तब वे जैसे संलग्न होते हैं, अथवा जैसे गाड़ी के पहिये की घुरी में आरे संलग्न होते हैं, ये दोनों दृष्टान्त जानने चाहिए । विशेषता यह है कि बलि अपनी विकुर्वणा-शक्ति से सातिरेक सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को भर देता है । शेष पूर्ववत् समझ लेना ।
भगवन् ! यदि वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि इतनी महाऋद्धि वाला है, यावत् उसकी इतनी विकुर्वणाशक्ति है तो उस वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि के सामानिक देव कितनी बड़ी ऋद्धि वाले हैं, यावत् उनकी विकुर्वणाशक्ति कितनी है ? ( गौतम !) बलि के सामानिक देव, त्रायस्त्रिंशक एवं लोकपाल तथा अग्रमहिषियों की ऋद्धि एवं विकुर्वणाशक्ति का वर्णन चमरेन्द्र के सामानिक देवों की तरह समझना चाहिए । विशेषता यह है कि इतनी विकुर्वणाशक्ति सातिरेक जम्बूद्वीप के स्थल तक को भर देने की है; यावत् प्रत्येक अग्रमहिषी की इतनी