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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
अन्तरहित है । हे स्कन्दक ! सिद्धि अन्त-सहित भी है और अन्तरहित भी है ।
हे स्कन्दक ! फिर तुम्हें यह संकल्प-विकल्प उत्पन्न हुआ था कि सिद्ध अन्तसहित हैं या अन्तरहित हैं ? उसका अर्थ भी इस प्रकार है-यावत्-द्रव्य से एक सिद्ध अन्तसहित है । क्षेत्र से सिद्ध असंख्यप्रदेश वाले तथा असंख्य आकाश-प्रदेशों का अवगाहन किये हुए हैं, अतः अन्तसहित हैं । काल से-(कोई भी एक) सिद्ध आदिसहित और अन्तरहित है । भाव से सिद्ध अनन्तज्ञानपर्यायरूप हैं, अनन्तदर्शनपर्यायरूप हैं, यावत्-अनन्त-अगुरुलघुपर्यायरूप हैं तथा अन्तरहित हैं । इसलिए हे स्कन्दक ! सिद्ध अन्तसहित भी हैं और अन्तरहित भी ।
और हे स्कन्दक ! तुम्हें जो इस प्रकार का अध्यवसाय, चिन्तन, यावत्-संकल्प उत्पन्न हुआ था कि कौन-से मरण से मरते हुए जीव का संसार बढ़ता है और कौन-से मरण से मरते हुए जीव का संसार घटता है ? उसका भी अर्थ यह है-हे स्कन्दक ! मैंने दो प्रकार के मरण बतलाए हैं । वे इस प्रकार हैं-बालमरण और पण्डितमरण ।
___'वह बालमरण क्या है ?' बालमरण बारह प्रकार का कहा गया है; वह इस प्रकार है(१) बलयमरण (तड़फते हुए मरना), (२) वशार्तमरण (पराधीनतापूर्वक मरना), (३) अन्तःशल्यमरण, (४) तद्भवमरण, (५) गिरिपतन, (६) तरुपतन, (७) जलप्रवेश, (८) ज्वलनप्रवेश, (९) विषभक्षण (विष खाकर मरना), (१०) शस्त्राघात से मरना, (११) वैहानस मरण (गले में फांसी लगाने या वृक्ष आदि पर लटकने से होने वाला मरण) और (१२) गृघ्रपृष्ठमरण (गिद्ध आदि पक्षियों द्वारा पीठ आदि शरीरावयवों का मांस खाये जाने से होने वाला मरण) । हे स्कन्दक ! इन बारह प्रकार के बालमरणों से मरता हुआ जीव अनन्त बार नारक भवों को प्राप्त करता है, तथा नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव, इस चातुर्गतिक अनादिअनन्त संसाररूप वन में बार-बार परिभ्रमण करता है । यह है-बालमरण का स्वरूप ।
पण्डितमरण क्या है ? पण्डितमरण दो प्रकार का कहा गया है । पादपोपगमन (वृक्ष की कटी हई शाखा की तरह स्थिर (निश्चल) होकर मरना) और भक्त-प्रत्याख्यान (यावज्जीवन तीन या चारों आहारों का त्याग करने के बाद शरीर की सार संभाल करते हुए जो मृत्यु होती है) । पादपोपगमन (मरण) क्या है ? पादपोपगमन दो प्रकार का है । निर्हारिम और अनि रिम । यह दोनों प्रकार का पादपोपगमन-मरण नियम से अप्रतिकर्म होता है । भक्तप्रत्याख्यान (मरण) क्या है ? भक्तप्रत्याख्यान मरण दो प्रकार का है । निर्हारिम और अनि रिम । यह दोनों प्रकार का भक्तप्रत्याख्यान-मरण नियम से सप्रतिकर्म होता है ।।
हे स्कन्दक ! इन दोनों प्रकार के पण्डितमरणों से मरता हुआ जीव नारकादि अनन्त भवों को प्राप्त नहीं करता; यावत्...संसाररूपी अटवी को उल्लंघन (पार) कर जाता है । इस प्रकार इन दोनों प्रकार के पण्डितमरणों से मरते हुए जीव का संसार घटता है । हे स्कन्दक! इन दो प्रकार के मरणों से मरते हुए जीव का संसार बढ़ता और घटता है ।
[११३] (भगवान् महावीर से समाधान पाकर) कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक पब्रिाजक को सम्बोध प्राप्त हुआ । उसने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना-नमस्कार करके यों कहा'भगवन् ! मैं आपके पास केवलिप्ररूपित धर्म सुनना चाहता हूँ ।' हे देवानुप्रिय ! जैसा तुम्हें सुख हो, वैसा करो, शुभकार्य में विलम्ब मत करो । इसके पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक पब्रिाजक को और उस बहुत बड़ी परिषद् को धर्मकथा