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भगवती -१/-/१०/१०२
वह भाषा नहीं है ।'
'करने से जो पूर्व की जो क्रिया है, वह दुःखरूप है, वर्तमान में जो क्रिया की जाती है, वह दुःखरूप नहीं है और करने के समय के बाद की कृतक्रिया भी दुःखरूप है ।' वह जो पूर्व की क्रिया है, वह दुःख का कारण है; की जाती हुई क्रिया दुःख का कारण नहीं है और करने के समय के बाद की क्रिया दुःख का कारण है; तो क्या वह करने से दुःख का कारण है या न करने से दुःख का कारण है ? न करने से वह दुःख का कारण है, करने से दुःख का कारण नहीं है; ऐसा कहना चाहिए । अकृत्य दुःख है, अस्पृश्य दुःख है, और अक्रियमाण कृत दुःख है । उसे न करके प्राण, भूत, जीव और सत्त्व वेदना भोगते हैं, ऐसा कहना चाहिए । श्री गौतमस्वामी पूछते हैं'भगवन् ! क्या अन्यतीर्थिकों का इस प्रकार का यह मत सत्य है ?? गौतम ! यह अन्यतीर्थिक जो कहते हैं - यावत् वेदना भोगते हैं, ऐसा कहना चाहिए, उन्होंने यह सब जो कहा है, वह मिथ्या कहा है । हे गौतम! मैं ऐसा कहता हूँ कि जो चल रहा है, वह 'चला' कहलाता है और यावत् जो निर्जर रहा है, वह निर्जीर्ण कहलाता है ।
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दो परमाणु पुद्गल आपस में चिपक जाते हैं । इसका क्या कारण है ? दो परमाणु पुद्गलों में चिकनापन है, इसलिए दो परमाणु पुद्गल परस्पर चिपक जाते हैं । इन दो परमाणु पुद्गलों के दो भाग हो सकते हैं । दो परमाणु पुद्गलों के दो भाग किये जाएँ तो एक तरफ एक परमाणु और एक तरफ एक परमाणु होता है । तीन परमाणुपुद्गल परस्पर चिपक जाते हैं । तीन परमाणुपुद्गल परस्पर क्यों चिपक जाते हैं । तीन परमाणुपुद्गल इस कारण चिपक जाते हैं, कि उन परमाणुपुद्गलों में चिकनापन है । उन तीन परमाणुपुद्गलों के दो भाग भी हो सकते हैं और तीन भाग भी हो सकते हैं । दो भाग करने पर एक तरफ परमाणु, और एक तरफ दो प्रदेशवाला एक द्व्यणुक स्कन्ध होता है । तीन भाग करने पर एक-एक करके तीन परमाणु हो जाते हैं । इसी प्रकार यावत्-चार परमाणु पुद्गल में भी समझना चाहिए । परन्तु तीन परमाणु के डेढ - डेढ (भाग) नहीं हो सकते । पाँच परमाणुपुद्गल परस्पर चिपक जाते हैं और परस्पर चिपककर एक स्कन्धरूप बन जाते हैं । वह स्कन्ध अशाश्वत है और सदा उपचय तथा अपचय पाता है ।
बोलने से पहले की भाषा अभाषा है; बोलते समय की भाषा भाषा है और बोलने के बाद की भाषा भी अभाषा है । वह जो पहले की भाषा अभाषा है, बोलते समय की भाषा भाषा है, और बोलने के बाद की भाषा अभाषा है; सो क्या बोलने वाले पुरुष की भाषा है, या नहीं बोलते हुए पुरुष की भाषा है ? वह बोलने वाले पुरुष की भाषा है, नहीं बोलते हुए पुरुष की भाषा नहीं है । (करने से ) पहले की क्रिया दुःख का कारण नहीं है, उसे भाषा के समान ही समझना चाहिए । यावत्-वह क्रिया करने से दुःख का कारण है, न करने से दुःख का कारण नहीं है, ऐसा कहना चाहिए । कृत्य दुःख है, स्पृश्य दुःख है, क्रियमाण कृत दुःख है । उसे कर-करके प्राण, भूत, जीव और वेदना भोगते हैं; ऐसा कहना चाहिए ।
[१०३] भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं - यावत् प्ररूपणा करते हैं कि एक जीव एक समय में दो क्रियाएँ करता है । वह इस प्रकार - ऐर्यापथिकी और साम्परायिकी । जिस समय (जीव ) एर्यापथिकी क्रिया करता है, उस समय साम्परायिकी क्रिया करता है और जिस