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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
आधाकर्मदोषयुक्त आहार भोगता हुआ ( श्रमण) आयुकर्म को छोड़कर सात कर्मों की शिथिलबद्ध प्रकृतियों को गाढ़बन्धन बद्ध कर लेता है, यावत् - संसार में बार-बार परिभ्रमण करता है ।
हे भगवन् ! प्रासुक और एषणीय आहारादि का उपभोग करने वाला श्रमणनिर्ग्रन्थ क्या बाँधता है ? यावत् किसका उपचय करता है ? गौतम ! प्रासुक और एषणीय आहारादि भोगने वाला श्रमणनिर्ग्रन्थ, आयुकर्म को छोड़कर सात कर्मों की दृढ़बन्धन से बद्ध प्रकृतियों को शिथिल करता है । उसे संवृत अनगार के समान समझना चाहिए । विशेषता यह है कि आयुकर्म को कदाचित् बाँधता है और कदाचित् नहीं बांधता । शेष उसी प्रकार समझना चाहिए; यावत् संसार को पार कर जाता है । 'भगवन् ! इसका क्या कारण है ?' गौतम ! प्राक एषणीय आहारादि भोगने वाला श्रमणनिर्ग्रन्थ, अपने आत्मधर्म का उल्लंघन नहीं करता । वह पृथ्वीकाय के जीवों का जीवन चाहता है, यावत्-त्रसकाय के जीवों का जीवन चाहता है और जिन जीवों का शरीर उसके उपभोग में आता है, उनका भी वह जीवन चाहता है । इस कारण से हे गौतम! वह यावत्-संसार को पार कर जाता है ।
[१०१] भगवन् ! क्या अस्थिर पदार्थ बदलता है और स्थिर पदार्थ नहीं बदलता ? क्या अस्थिर पदार्थ भंग होता है और स्थिर पदार्थ भंग नहीं होता ? क्या बाल शाश्वत है तथा बालत्व अशाश्वत है ? क्या पण्डित शाश्वत है और पण्डितत्व अशाश्वत ? हाँ, गौतम ! अस्थिर पदार्थ बदलता है यावत् पण्डितत्व अशाश्वत है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक - १ उद्देशक - १०
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[१०२] भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत् इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं कि- 'जो चल रहा है, वह अचलित है-चला नहीं कहलाता और यावत् - जो निर्जीर्ण हो रहा है, वह निर्जीर्ण नहीं कहलाता ।' 'दो परमाणुपुद्गल एक साथ नहीं चिपकते ।' दो परमाणुपुद्गल एक साथ क्यों नहीं चिपकते ? इसका कारण यह है कि दो परमाणुपुद्गलों में चिपकनापन नहीं होती 'तीन परमाणुपुद्गल एक दूसरे से चिपक जाते हैं ।' तीन परमाणुपुद्गल परस्पर क्यों चिपक जाते हैं ? इसका कारण यह है कि तीन परमाणुपुद्गलों में स्निग्धता होती है; यदि तीन परमाणु - पुद्गलों का भेदन (भाग) किया जाए तो दो भाग भी हो सकते हैं, एवं तीन भाग भी हो सकते हैं । अगर तीन परमाणु- पुद्गलों के दो भाग किये जाएँ तो एक तरफ डेढ़ परमाणु होता है और दूसरी तरफ भी डेढ़ परमाणु होता है । यदि तीन परमाणुपुद्गलों के तीन भाग किये जाएँ तो एक-एक करके तीन परमाणु अलग-अलग हो जाते हैं । इसी प्रकार यावत् चार परमाणु - पुद्गलों के विषय में समझना चाहिए ।' पाँच परमाणुपुद्गल परस्पर चिपक जाते हैं। और वे दुःखरूप (कर्मरूप ) में परिणत होते हैं । वह दुःख (कर्म) भी शाश्वत है, और सदा सम्यक् प्रकार से उपचय को और अपचय को प्राप्त होता है ।'
'बोलने से पहले की जो भाषा (भाषा के पुद्गल) है, वह भाषा है । बोलते समय की भाषा अभाषा है और बोलने का समय व्यतीत हो जाने के बाद की भाषा, भाषा है ।' यह जो बोलने से पहले की भाषा, भाषा है और बोलते समय की भाषा, अभाषा है तथा बोलने के समय के बाद की भाषा, भाषा है; सो क्या बोलते हुए पुरुष की भाषा है या न बोलते हुए पुरुष की भाषा है ?' 'न बोलते हुए पुरुष की वह भाषा है, बोलते हुए पुरुष की