________________
आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
वर्णन चमरेन्द्र के लोकपालों के समान जानना । इतना विशेष है कि स्वयम्प्रभ नामक विमान में सुधर्मासभा में, सोम नामक सिंहासन पर बैठ कर मैथुननिमित्तक भोग भोगने में समर्थ नहीं इत्यादि पूर्ववत् । इसी प्रकार वैश्रमण लोकपाल तक का कथन करना । विशेष यह है कि इनके विमान आदि का वर्णन तृतीयशतक अनुसार जानना ।
भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? आर्यो ! आठ हैं । कृष्णा, कृष्णराजि, रामा, रामरक्षिता, वसु, वसुगुप्ता, वसुमित्रा, वसुन्धरा । इनमें से प्रत्येक अग्रमहिषी की देवियों के परिवार आदि का शेष समस्त वर्णन शक्रेन्द्र के समान जानना । भगवन् ! देवेन्द्र ईशान के लोकपाल सोम महाराजा की कितनी अग्रमहिषियाँ कही गई हैं ? आर्यो ! चार अग्रमहिषियाँ हैं, यथा- पृथ्वी, रात्रि, रजनी और विद्युत् । इनमें से प्रत्येक अग्रमहिषी की देवियों के परिवार आदि शेष समग्र वर्णन शक्रेन्द्र के लोकपालों के समान है । इसी प्रकार वरुण लोकपाल तक जानना चाहिए । विशेष यह है कि इनके विमानों का वर्णन चौथे शतक अनुसार जानना चाहिए । शेष पूर्ववत्, यावत् - वह मैथुननिमित्तक भोग भोगने में समर्थ नहीं है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ! भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
शतक - १० उद्देशक- ६
[४९०] भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र की सुधर्मासभा कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण दिशा में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम रमणीय भूभाग से अनेक कोटाकोटि योजन दूर ऊँचाई में सौधर्म नामक देवलोक में सुधर्मा सभा है; इस प्रकार सारा वर्णन राजप्रश्नीयसूत्र के अनुसार जानना, यावत् पांच अवतंसक विमान कहे गए हैं; यथा - असोकावतंसक यावत् मध्य में सौधर्मावतंसक विमान है । वह सौधर्मावतंसक महाविमान लम्बाई और चौड़ाई में साढ़े बारह लाख योजन है ।
२८८
[४९१] सूर्याभविमान के समान विमान प्रमाण तथा उपपात अभिषेक, अलंकार तथा अर्चनिका यावत् आत्मरक्षक इत्यादि सारा वर्णन सूर्याभदेव के समान जानना चाहिए । उसकी स्थिति (आयु) दो सागरोपम की है ।
[४९२ ] भगवन् ! देवेन्द्र शक्र कितनी महती कृषि वाला यावत् कितने महान् सुख वाला है ? गौतम ! वह महा ऋद्धिशाली यावत् महासुखसम्पन्न है । वह वहाँ बत्तीस लाख विमानों का स्वामी है; यावत् विचरता है । देवेन्द्र देवराज शक्र इस प्रकार की महाऋद्धि से सम्पन्न और महासुखी है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है ! शतक - १० उद्देशक - ७
[४९३] भगवान् ! उत्तरदिशा में रहने वाले एकोरुक मनुष्यों का एकोरुकद्वीप नामक द्वीप कहाँ है ? गौतम ! एकोरुकद्वीप से लेकर यावत् शुद्धदन्तद्वीप तक का समस्त वर्णन जीवाभिगमसूत्र अनुसार जानना चाहिए । इस प्रकार अट्ठाईस द्वीपों के ये अट्ठाईस उद्देशक कहने चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ! भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक - १० का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
५/१ भगवती अङ्गसूत्र ५ / १ ( भाग - ३) हिन्दी अनुवाद पूर्ण ।