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________________ भगवती-१०/-/१/४७५ २७९ एकेन्द्रिय यावत् अनिन्द्रिय जीव के प्रदेश हैं । उसमें जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के हैं, यतारूपी अजीव और अरूपी अजीव । रूपी अजीवों के चार भेद हैं यथा-स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्धप्रदेश और परमाणुपुद्गल । जो अरूपी अजीव हैं, वे सात प्रकार के हैं, यथा-धर्मास्तिकाय नहीं किन्तु धर्मास्तिकाय का देश हैं, अधर्मास्तिकाय के प्रदेश, आकाशास्तिकाय नहीं किन्तु आकाशास्तिकाय का देश, आकाशास्तिकाय के प्रदेश और अद्धासमय अर्थात् काल है । भगवन् ! आग्नेयीदिशा क्या जीवरूप है, जीवदेशरूप है, अथवा जीवप्रदेशरूप है ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! वह जीवरूप नहीं, किन्तु जीव के देशरूप है, जीव के प्रदेशरूप भी है तथा अजीवरूप है और अजीव के प्रदेशरूप भी है । इसमें जीव के जो देश हैं वे नियमतः एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं, अथवा एकेन्द्रियों के बहुत देश और द्वीन्द्रिय का एक देश हैं १, अथवा एकेन्द्रियों के बहुत देश एवं द्वीन्द्रियों के बहुत देश हैं २, अथवा एकेन्द्रियों के बहुत देश और बहुत द्वीन्द्रियों के बहुत देश हैं ३. एकेन्द्रियों के बहुत देश और एक त्रीन्द्रिय का एक देश है १, इसी प्रकार से पूर्ववत् त्रीन्द्रिय के साथ तीन भंग कहने चाहिए । इसी प्रकार यावत् अनिन्द्रिय तक के भी क्रमशः तीन-तीन भंग कहने चाहिए । इसमें जीव के जो प्रदेश हैं, वे नियम से एकेन्द्रियों के प्रदेश हैं । अथवा एकेन्द्रियों के बहुत प्रदेश और एक द्वीन्द्रिय के बहुत प्रदेश हैं, अथवा एकेन्द्रियों के बहुत प्रदेश और बहुत द्वीन्द्रियों के बहुत प्रदेश हैं । इसी प्रकार सर्वत्र प्रथम भंग को छोड़ कर दो-दो भंग जानने चाहिए; यावत् अनिन्द्रिय तक इसी प्रकार कहना चाहिए । अजीवों के दो भेद हैं, यथा-रूपी अजीव और अरूपी अजीव । जो रूपी अजीव हैं, वे चार प्रकार के हैं, यथा-स्कन्ध से लेकर यावत् परमाणु पुद्गल तक । अरूपी अजीव सात प्रकार के हैं, यथा-धर्मास्तिकाय नहीं, किन्तु धर्मास्तिकाय का देश, धर्मास्तिकाय के प्रदेश, अधर्मास्तिकाय नहीं, किन्तु अधर्मास्तिकाय का देश, अधर्मास्तिकाय के प्रदेश, आकाशास्तिकाय नहीं, किन्तु आकाशास्तिकाय का देश, आकाशास्तिकाय के प्रदेश और अद्धासमय । भगवन् ! याम्या (दक्षिण)-दिशा क्या जीवरूप है ? इत्यादि प्रश्न । (गौतम !) ऐन्द्रीदिशा के समान जानना । नैर्ऋती विदिशा को आग्नेयी विदिशा के समान जानना । वारुणी (पश्चिम)-दिशा को ऐन्द्रीदिशा के समान जानना । वायव्या विदिशा आग्रेयी के समान है । सौम्या (उत्तर)-दिशा ऐन्द्रीदिशा के समान जान लेना । ऐशानी विदिशा आग्नेयी के समान जानना । विमला (ऊर्ध्व)-दिशा में जीवों का कथन आग्नेयी के समान है तथा अजीवों का कथन ऐन्द्रीदिशा के समान है । इसी प्रकार तमा (अधोदिशा) को भी जानना । विशेष इतना कि तमादिशा में अरूपी-अजीव के ६ भेद ही हैं, वहाँ अद्धासमय नहीं है । अतः अद्धासमय का कथन नहीं किया गया । [४७६] भगवन् ! शरीर कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पांच प्रकार के औदारिक, यावत् कार्मण। भगवन् औदारिक शरीर कितने प्रकार का है ? अवगाहन-संस्थान-पद समान अल्पबहुत्व तक जानना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । | शतक-१० उद्देशक-२ | [४७७] राजगृह में यावत् गौतमस्वामी ने पूछा- भगवन् ! वीचिपथ में स्थित होकर
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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