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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
क्रियावाले, कदाचित् चार क्रियावाले और कदाचित् पांच क्रियावाले होते हैं । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, अप्कायिक जीवों को आभ्यन्तर एवं बाह्य श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते और छोड़ते हुए कितनी क्रिया वाले होते हैं ? हे गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक तक कहना । इसी प्रकार अप्कायिक जीवों के साथ, तथा इसी प्रकार तेजस्कायिक जीवो के साथ तथा इसी प्रकार ही वायुकायिकजीवों के साथ भी पृथ्वीकायिक आदि का कथन करना ।
भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीव, वनस्पतिकायिक जीवों को आभ्यन्तर और बाह्य श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते और छोड़ते हुए कितनी क्रिया वाले होते हैं ? गौतम ! कदाचित् तीन क्रिया वाले, कदाचित् चार क्रिया वाले और कदाचित् पांच क्रिया वाले होते हैं । [४७३] भगवन् ! वायुकायिक जीव, वृक्ष के मूल को कंपाते हुए और गिराते हुए कितनी क्रिया वाले होते हैं ? गौतम ! वे कदाचित् तीन क्रिया वाले, कदाचित् चार क्रिया वाले और कदाचित् पांच किया वाले होते हैं । इसी प्रकार कंद को कंपाने आदि के सम्बन्ध में जानना चाहिए । इसी प्रकार यावत् बीज को कंपाते या गिराते हुए आदि की क्रिया से सम्बन्धित प्रश्न । गौतम ! वे कदाचित् तीन क्रिया वाले, कदाचित् चार क्रिया वाले, कदाचित् पांच क्रिया वाले होते हैं । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक - ९ का मुनिदीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
शतक- १०
[४७४] दशवें शतक के चौंतीस उद्देशक इस प्रकार हैं- दिशा, संवृतअनगार, आत्मऋद्धि, श्यामहस्ती, देवी, सभा और उत्तरवर्ती अट्ठाईस अन्तद्वीप ।
शतक - १० उद्देशक - १
[ ४७५] राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा- भगवन् ! यह पूर्वदिशा क्या कहलाती है ? गौतम ! यह जीवरूप भी है और अजीवरूप भी है । भगवन् ! पश्चिमदिशा क्या कहलाती है ? गौतम ! यह भी पूर्वदिशा के समान जानना । इसी प्रकार दक्षिणदिशा, उत्तरदिशा, ऊर्ध्वदिशा और अधोदिशा के विषय में भी जानना चाहिए ।
भगवन् ! दिशाएँ कितनी कही गई हैं ? गौतम ! दिशाएँ दस कही गई हैं । वे इस प्रकार हैं- पूर्व, पूर्व-दक्षिण, दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम, पश्चिम, पश्चिमोत्तर, उत्तर, उत्तरपूर्व, ऊर्ध्वदिशा और अधोदिशा । भगवन् ! इन दस दिशाओं के कितने नाम कहे गए हैं ? गौतम ! ( इनके ) दस नाम हैं, ऐन्द्री (पूर्व), आग्नेयी, याम्या (दक्षिण), नैर्ऋती, वारुणी (पश्चिम), वायव्या, सौम्या (उत्तर), ऐशानी, विमला (ऊर्ध्वदिशा) और तमा (अधोदिशा) ।
भगवन् ! ऐन्द्री पूर्व दिशा जीवरूप है, जीव के देशरूप है, जीव के प्रदेशरूप है, अथवा अजीवरूप है, अजीव के देशरूप है या अजीव के प्रदेशरूप है ? गौतम ! वह जीवरूप भी है, इत्यादि पूर्ववत् जानना चाहिए, यावत् वह अजीवप्रदेशरूप भी है । उसमें जो जीव हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, यावत् पंचेन्द्रिय तथा अनिन्द्रिय हैं । जो जीव के देश हैं, वे नियमतः एकेन्द्रिय यावत् अनिन्द्रिय जीव के देश हैं । जो जीव के प्रदेश हैं, वे नियमतः