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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
पूछा - 'हे देवानुप्रियो ! क्या आज क्षत्रियकुण्डग्राम नगर में इन्द्र आदि का कोई उत्सव है, जिसके कारण यावत् ये सब लोग बाहर जा रहे हैं ?"
तब जमाल क्षत्रियकुमार के इस प्रकार कहने पर वह कंचुकी पुरुष अत्यन्त हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ । उसने श्रमण भगवान् महावीर का आगमन जान कर एवं निश्चित करके हाथ जोड़ कर जय-विजय ध्वनि से जमालि क्षत्रियकुमार को बधाई दी । उसने कहा - 'हे देवानुप्रिय ! आज क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के बाहर इन्द्र आदि का उत्सव नहीं है, किन्तु देवानुप्रिय ! आदिकर यावत् सर्वज्ञ-सर्वदर्शी श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ब्राह्मणकुण्डग्राम नगर के बाहर बहुशाल नामक उद्यान में अवग्रह ग्रहण करके यावत् विचरते हैं; इसी कारण ये उग्रकुल, भोगकुल आदि के क्षत्रिय आदि तथा और भी अनेक जन वन्दन के लिए यावत् जा रहे हैं ।' तदनन्तर कंचुकीपुरुष से यह बात सुन कर और हृदय में धारण करके जमालि क्षत्रियकुमार हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ । उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा - 'देवानुप्रियो ! तुम शीघ्र ही चार घण्टा वाले अश्वरथ को जोत कर यहाँ उपस्थित करो और मेरी इस आज्ञा का पालन करके सूचना दो । तब उन कौटुम्बिक पुरुषों ने क्षत्रियकुमार जमालि के इस आदेश को सुन कर तदनुसार कार्य करके निवेदन किया ।
तदनन्तर वह जमाल क्षत्रियकुमार जहाँ स्नानगृह था, वहाँ आया उसने स्नान किया तथा अन्य सभी दैनिक क्रियाएँ की, यावत् शरीर पर चन्दन का लेपन किया; समस्त आभूषणों से विभूषित हुआ और स्नानगृह से निकला आदि सारा वर्णन औपपातिकसूत्र अनुसार जानना चाहिए । फिर जहाँ बाहर की उपस्थानशाला थी और जहाँ सुसज्जित चातुर्घष्ट अश्वरथ था, वहाँ वह आया । उस अश्वरथ पर चढ़ा । कोरण्टपुष्प की माला से युक्त छत्र को मस्तक पर धारण किया हुआ तथा बड़े-बड़े सुभटों, दासों, पथदर्शकों आदि के समूह से परिवृत हुआ वह जमालि क्षत्रियकुमार क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के मध्य में से होकर निकला और ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर के बाहर जहाँ बहुशाल नामक उद्यान था, वहाँ आया । वहाँ घोड़ों को रोक कर रथ को खड़ा किया, वह रथ से नीचे उतरा । फिर उसने पुष्प, ताम्बूल, आयुध ( शस्त्र) आदि तथा उपानह ( जूते ) वहीं छोड़ दिये । एक पट वाले वस्त्र का उत्तरासंग किया । तदनन्तर आचमन किया हुआ और अशुद्धि दूर करके अत्यन्त शुद्ध हुआ जमालि मस्तक पर दोनों हाथ जोड़े हुए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास पहुँचा । समीप जाकर श्रमण भगवान् महावीर की तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा की, यावत् त्रिविध पर्युपासना की । तदनन्तर श्रमण भगवान् महावीरस्वामी ने उस क्षत्रियकुमार जमालि तथा उस बहुत बड़ी ऋषिगण आदि की परिषद् की यावत् धर्मोपदेश दिया । यावत् परिषद वापस लौट गई ।
[४६४] श्रमण भगवान् महावीर के पास से धर्म सुन कर और उसे हृदयंगम करके हर्षित और सन्तुष्ट क्षत्रियकुमार जमालि यावत् उठा और खड़े होकर उसने श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा की यावत् वन्दन - नमन किया और कहा - "भगवन् ! मैं निर्ग्रन्थ-प्रवचन पर श्रद्धा करता हूँ । भगवन् ! मैं निर्ग्रन्थ-प्रवचन पर प्रतीति करता हूँ । भन्ते ! निर्ग्रन्थ-प्रवचन में मेरी रुचि है । भगवन् ! मैं निर्ग्रन्थ-प्रवचन के अनुसार चलने के लिए अभ्युद्यत हुआ हूँ । भन्ते ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन तथ्य है, सत्य है; भगवन् ! यह असंदिग्ध है, यावत् जैसा कि आप कहते हैं । किन्तु हे देवानुप्रिय ! मैं अपने माता-पिता को पूछता
और उनकी अनुज्ञा लेकर आप देवानुप्रिय के समीप मुण्डित हो कर अगारधर्म से अनगारधर्म प्रव्रजित होना चाहता हूँ ।" "देवानुप्रिय ! जैसा तुम्हें सुख हो वैसा करो ।” जब श्रमण