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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
भगवन् ! अज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! तीन प्रकार का- मतिअज्ञान, श्रुत-अज्ञान और विभंगज्ञान । भगवन् ! मति-अज्ञान कितने प्रकार का है ? गौतम! चार प्रकार का अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा । भगवन् ! वह अवग्रह कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का अर्थावग्रह और व्यञ्जनावग्रह । जिस प्रकार (नन्दीसूत्र में) आभिनिबोधिकज्ञान के विषय में कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी जान लेना चाहिए । विशेष इतना ही है कि वहाँ आभिनिबोधिकज्ञान के प्रकरण में अवग्रह आदि के एकार्थिक शब्द कहे हैं, उन्हें छोड़कर यह 'नोइन्द्रिय-धारणा है', तक कहना । भगवन् ! श्रुत-अज्ञान किस प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! जिस प्रकार नन्दीसूत्र में कहा गया है-'जो अज्ञानी मिथ्यादृष्टियों द्वारा प्ररूपित है'; इत्यादि यावत्-सांगोपांग चार वेद श्रुत-अज्ञान है । इस प्रकार श्रुत-अज्ञान का वर्णन पूर्ण हुआ ।
भगवन् ! विभंगज्ञान किस प्रकार का है ? अनेक प्रकार का है । -ग्रामसंस्थित, नगरसंस्थित यावत् सन्निवेशसंस्थित, द्वीपसंस्थित, समुद्रसंस्थित, वर्ष-संस्थित, वर्षधरसंस्थित, सामान्य पर्वत-संस्थित, वृक्षसंस्थित, स्तूपसंस्थित, हयसंस्थित, गजसंस्थित, नरसंस्थित, किन्नरसंस्थित, किम्पुरुषसंस्थित, महोरगसंस्थित, गन्धर्वसंस्थित, वृषभसंस्थित, पशु, पशय, विहग और वानर के आकारवाला है । इस प्रकार विभंगज्ञान नाना संस्थानसंस्थित है ।
- भगवन् ! जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? गौतम ! जीव ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं । जो जीव ज्ञानी हैं, उनमें से कुछ जीव दो ज्ञान वाले हैं, कुछ जीव तीन ज्ञान वाले हैं, कुछ जीव चार ज्ञान वाले हैं और कुछ जीव एक ज्ञान वाले हैं । जो दो ज्ञान वाले हैं, वे मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी होते हैं, जो तीन ज्ञान वाले हैं, वे आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी
और अवधिज्ञानी हैं, अथवा आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और मनःपर्यवज्ञानी होते हैं । जो चार ज्ञान वाले हैं, वे आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी और मनःपर्यवज्ञानी हैं । जो एक ज्ञान वाले हैं, वे नियमतः केवलज्ञानी हैं ।
जो जीव अज्ञानी हैं, उनमें से कुछ जीव दो अज्ञान वाले हैं, कुछ तीन अज्ञान वाले होते हैं । जो जीव दो अज्ञान वाले हैं, वे मति-अज्ञानों और श्रुत-अज्ञानी हैं; जो जीव तीन अज्ञान वाले हैं, वे मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी और विभंगज्ञानी हैं ।
भगवन् ! नैरयिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? गौतम ! नैरयिक जीव ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं । उनमें जो ज्ञानी हैं, वे नियमतः तीन ज्ञान वाले हैं, यथा
आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी । जो अज्ञानी हैं, उनमें से कुछ दो अज्ञान वाले हैं, और कुछ तीन अज्ञान वाले हैं । इस प्रकार तीन अज्ञान भजना से होते हैं ।
भगवन् ! असुरकुमार ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? गौतम ! नैरयिकों समान असुरकुमारों का भी कथन करना । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक कहना ।
भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? गौतम ! वे ज्ञानी नहीं हैं, अज्ञानी हैं । वे नियमतः दो अज्ञान वाले हैं; यथा-मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी । इसी प्रकार वनस्पतिकायिक पर्यन्त कहना । भगवन ! द्वीन्द्रिय जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? गौतम ! द्वीन्द्रिय जीव ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी । जो ज्ञानी हैं, वे नियमतः दो ज्ञान वाले हैं, यथा मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी । जो अज्ञानी हैं, नियमतः दो अज्ञान वाले हैं, यथा-मति