________________
भगवती -१/-/१/१२
१९
आहार करते हैं या वे सर्व आहारक द्रव्यों का आहार करते हैं ? और वे आहारक द्रव्यों को किस रूप में बार-बार परिणमाते हैं ।
[१३] भगवन् ! नैरयिकों द्वारा पहले आहार किये हुए पुद्गल परिणत हुए ? आहारित तथा (वर्तमान में) आहार किये जाते हुए पुद्गल परिणत हुए ? अथवा जो पुद्गल अनाहारित हैं, वे तथा जो पुद्गल आहार के रूप में ग्रहण किये जाएँगे, वे परिणत हुए ? अथवा जो पुद्गल अनाहारित हैं और आगे भी आहारित नहीं होंगे, वे परिणत हुए ?
हे गौतम ! नारकों द्वारा पहले आहार किये हुए पुद्गल परिणत हुए; १. ( इसी तरह ) आहार किये हुए और आहार किये जाते हुए पुद्गल परिणत हुए परिणत होते हैं, २. किन्तु नहीं आहार किये हुए (अनाहारित) पुद्गल परिणत नहीं हुए, तथा भविष्य में जो पुद्गल आहार के रूप में ग्रहण किये जाएँगे, वे परिणत होंगे, ३. अनाहारित पुद्गल परिणत नहीं हुए, तथा जिन पुद्गलों का आहार नहीं किया जाएगा, वे भी परिणत नहीं होंगे ४ ।
[१४] हे भगवन् ! नैरयिकों द्वारा पहले आहारित पुद्गल चय को प्राप्त हुए ? हे गौतम ! जिस प्रकार वे परिणत हुए, उसी प्रकार चय को प्राप्त हुए; उसी प्रकार उपचय को प्राप्त हुए; उदीरणा को प्राप्त हुए, वेदन को प्राप्त हुए तथा निर्जरा को प्राप्त हुए ।
[१५] परिणत, चित, उपचित, उदीरित, वेदित और निर्जीर्ण, इस एक-एक पद में चार प्रकार के पुद्गल ( प्रश्नोत्तर के विषय) होते हैं ।
[१६] हे भगवन् ! नारकजीवों द्वारा कितने प्रकार के पुद्गल भेदे जाते ? गौतम ! कर्मद्रव्यवर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्गल भेदे जाते हैं । अणु (सूक्ष्म) और बादर । भगवन् ! नारक जीवों द्वारा कितने प्रकार के पुद्गल चय किये जाते हैं ? गौतम ! आहार द्रव्यवर्गणा की अपेक्षा वे दो प्रकार के पुद्गलों का चय करते हैं, वे इस प्रकार हैंअणु और बादर २.; इसी प्रकार उपचय समझना ।
भगवन् ! नारक जीव कितने प्रकार के पुद्गलों की उदीरणा करते हैं ? गौतम ! कर्मद्रव्यवर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्गलों की उदीरणा करते हैं । वह इस प्रकार हैअणु और बादर । शेष पद भी इसी प्रकार कहने चाहिए: - वेदते हैं, निर्जरा करते हैं, अपवर्त्तन को प्राप्त हुए, अपवर्तन को प्राप्त हो रहे हैं, अपवर्तन को प्राप्त करेंगे, संक्रमण किया, संक्रमण करते हैं, संक्रमण करेंगे, निधत्त हुए, निधत्त होते हैं, निधत्त होंगे, निकाचित हुए निकाचित होते हैं, निकाचित होंगे, इन सब पदों में भी कर्मद्रव्यवर्गणा की अपेक्षा (अणु और बादर पुद्गलों का कथन करना चाहिए 1)
[१७] भेदेगए, चय को प्राप्त हुए, उपचय को प्राप्त हुए, उदीर्ण हुए, वेदे गए और निर्जीर्ण हुए (इसी प्रकार) अपवर्तन, संक्रमण, निधत्तन और निकाचन, (इन पिछले चार ) पदों में भी तीनों प्रकार काल कहना चाहिए । हे भगवन् ! नारक जीव जिन पुद्गलों को तैजस और कार्मणरूप में ग्रहण करते हैं, उन्हें क्या अतीत काल में ग्रहण करते हैं ? प्रत्युत्पन्न (वर्तमान) काल में ग्रहण करते हैं ? अथवा अनागत (भविष्य) काल में ग्रहण करते हैं ? गौतम ! अतीत काल में ग्रहण नहीं करते; वर्तमान काल में ग्रहण करते हैं; भविष्यकाल में ग्रहण नहीं करते ।
हे भगवन् ! नारक जीव तैजस और कार्मणरूप में ग्रहण किये हुए जिन पुद्गलों की