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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
हैं और काम अचित्त भी हैं । भगवन् ! काम जीब हैं अथवा अजीव हैं ? गौतम ! काम जीव भी हैं और काम अजीव भी हैं । भगवन् ! काम जीवों के होते हैं या अजीवों के होते हैं ? गौतम ! काम जीवों के होते हैं, अजीवों के नहीं होते । भगवन् ! काम कितने प्रकार के कहे गए ? गौतम ! काम दो प्रकार के कहे गए हैं । शब्द और रूप ।
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भगवन् ! भोग रूपी हैं अथवा अरूपी हैं ? गौतम भोग रूपी होते हैं, वे (भोग) अरूपी नहीं होते । भगवन् ! भोग सचित्त होते हैं या अचित्त होते हैं ? गौतम ! भोग सचित्त भी होते हैं और अचित्त भी होते हैं । भगवन् ! भोग जीव होते हैं या अजीव होते हैं ? गौतम ! भोग जीव भी होते हैं, और भोग अजीवों भी होते हैं । भगवन् ! भोग जीवों के होते हैं या अजीवों के होते हैं ? गौतम ! भोग जीवों के होते हैं, अजीवों के नहीं । भगवन् ! भोग कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! भोग तीन प्रकार के कहे गए हैं । वे - गन्ध, रस और स्पर्श । भगवन् ! काम भोग कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! कामभोग पांच प्रकार के कहे गए हैं । शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श ।
भगवन् ! जीव कामी हैं अथवा भोगी हैं ? गौतम ! जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं ? गौतम ! श्रोत्रेन्द्रिय और चक्षुरिन्द्रिय की अपेक्षा जीव कामी हैं और घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय एवं स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्षा जीव भोगी हैं । इस कारण, हे गौतम! जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं । भगवन् ! नैरयिक जीव कामी हैं अथवा भोगी हैं ? गौतम ! नैरयिक जीव भी पूर्ववत् कामी भी हैं, भोगी भी है । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक कहना चाहिए ।
भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के सम्बन्ध में भी यही प्रश्न है । गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव कमी नहीं हैं, किन्तु भोगी है । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि पृथ्वीकायिक व कमी नहीं, किन्तु भोगी हैं ? गौतम ! स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्षा से पृथ्वीकायिक जीव भोगी हैं । इसी प्रकार वनस्पतिकायिक जीवों तक कहना चाहिए ।
इसी प्रकार द्वीन्द्रिय जीव भी भोगी हैं, किन्तु विशेषता यह है कि वे जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्षा भोगी हैं । त्रीन्द्रिय जीव भी इसी प्रकार भोगी हैं, किन्तु विशेषता यह है कि वे घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्षा भोगी हैं । भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में भी प्रश्न है । गौतम ! चतुरिन्द्रिय जीव कामी भी है और भोगी भी हैं । भगवन् ऐसा किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! (चतुरिन्द्रिय जीव) चक्षुरिन्द्रिय की अपेक्षा कामी हैं और घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्षा भोगी हैं । इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि चतुरिन्द्रिय जीव कामी भी है और भोगी भी हैं । शेष वैमानिकों पर्यन्त सभी जीवों के विषय में औधिक जीवों की तरह कहना चाहिए ।
भगवन् ! काम-भोगी, नोकामी - नोभोगी और भोगी, इन जीवों में से कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! कामभोगी जीव सबसे थोड़े हैं, नोकामी नोभोगी जीव उनसे अनन्तगुणे हैं और भोगी जीव उनसे अनन्तगुणे हैं ।
[३६३] भगवन् ! ऐसा छद्मस्थ मनुष्य, जो किसी देवलोक में देव रूप में उत्पन्न होने वाला है, भगवन् ! वास्तव में वह क्षीणभोगी उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार - पराक्रम के द्वारा विपुल और भोगने योग्य भोगों को भोगता हुआ विहरण करने में समर्थ नहीं है ?