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भगवती-७/-/६/३५५
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प्रकार वहाँ उत्पन्न होता हुआ भी वह कदाचित् महावेदना और कदाचित् अल्पवेदना से युक्त होता है और जब वहाँ उत्पन्न हो जाता है, तत्पश्चात् वह विविध प्रकार से वेदना वेदता है । इसी प्रकार मनुष्य पर्यन्त कहना असुरकुमारों के समान वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के लिए भी कहना ।
[३५६] भगवन् ! क्या जीव आभोगनिवर्तित आयुष्य वाले हैं या अनाभोगनिवर्तित आयुष्यवाले हैं ? गौतम ! जीव आभोगनिवर्तित आयुष्यवाले नहीं हैं, किन्तु अनाभोगनिवर्तित आयुष्यवाले हैं | इसी प्रकार नैरयिकों के (आयुष्य के) विषय में भी कहना चाहिए । वैमानिकों पर्यन्त इसी तरह कहना चाहिए ।
[३५७] भगवन् ! क्या जीवों के कर्कश वेदनीय कर्म करते हैं ? हाँ, गौतम ! करते हैं । भगवन् ! जीव कर्कशवेदनीयकर्म कैसे बांधते हैं ? गौतम ! प्राणातिपात से यावत् मिथ्यादर्शनशल्य से बांधते हैं । क्या नैरयिक जीव कर्कशवेदनीय कर्म बांधते हैं ? हाँ, गौतम ! पहले कहे अनुसार बांधते हैं । इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना ।
भगवन् ! क्या जीव अकर्कशवेदनीय कर्म बांधते हैं ? हाँ, गौतम ! बांधते हैं । भगवन् ! जीव अकर्कशवेदनीय कर्म कैसे बांधते हैं ? गौतम ! प्राणातिपातविरमण से यावत् परिग्रह-विरमण से, इसी तरह क्रोध-विवेक से यावत् मिथ्यादर्शनशल्यविवेक से बांधते हैं । भगवन् ! क्या नैरयिक जीव अकर्कशवेदनीय कर्म बांधते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना । मनुष्यों के विषय में इतना विशेष है कि औधिक जीवों के समान ही सारा कथन करना चाहिए ।
[३५८] भगवन् ! क्या जीव सातावेदनीय कर्म बांधते हैं ? हाँ, गौतम ! बांधते हैं । भगवन् ! जीव सातावेदनीय कर्म कैसे बांधते हैं ? गौतम ! प्राणों पर अनुकम्पा करने से, भूतों पर अनुकम्पा करने से, जीवों के प्रति अनुकम्पा करने से और सत्त्वों पर अनुकम्पा करने से; तथा बहुत-से प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को दुःख न देने से, उन्हें शोक उत्पन्न न करने से, चिन्ता उत्पन्न न कराने से विलाप एवं रुदन करा कर आंसू न बहवाने से, उनको न पीटने से, उन्हें परिताप न देने से जीव सातावेदनीय कर्म बांधते हैं । इसी प्रकार नैरयिक जीवों के विषय में कहना चाहिए । इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए ।।
भगवन ! जीव असातावेदनीय कर्म बांधते हैं ? हाँ, गौतम ! बांधते हैं । भगवन ! जीव असातावेदनीय कर्म कैसे बांधते हैं ? गौतम ! दूसरों को दुःख देने से, दूसरे जीवों को शोक उत्पन्न करने से, जीवों को विषाद या चिन्ता उत्पन्न करने से, दूसरों को रुलाने या विलाप कराने से, दूसरों को पीटने से और जीवों को परिताप देने से तथा बहुत-से प्राण, भूत, जीव एवं सत्त्वों को दुःख पहुँचाने से, शोक उत्पन्न करने से यावत् उनको परिताप देने से हे गौतम इस प्रकार से जीव असातावेदनीय कर्म बांधते हैं । इसी प्रकार नैरयिक जीवों के विषय में समझना चाहिए । इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कथन करना चाहिए ।
[३५९] भगवन् ! इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल का दुःखमदुःषम नामक छठा आरा जब अत्यन्त उत्कट अवस्था को प्राप्त होगा, तब भारतवर्ष का आकारभाव-प्रत्यवतार कैसा होगा ? गौतम ! वह काल हाहाभूत, भंभाभूत (दुःखात) तथा कोलाहलभूत होगा । काल के प्रभाव से अत्यन्त कठोर, धूल से मलिन, असह्य, व्याकुल, 312