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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
वेदना भी वेदते हैं तथा कितने ही प्राण, भूत, जीव और सत्त्व विमात्रा से वेदना वेदते हैं ।
भगवन् ! किस कारण से ऐसा कथन किया जाता है ? गौतम ! नैरयिक जीव, एकान्तदुःखरूप वेदना वेदते हैं और कदाचित् सातारूप वेदना भी वेदते हैं । भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक एकान्तसाता (सुख) रूप वेदना वेदते हैं, किन्तु कदाचित् असातारूप वेदना भी वेदते हैं तथा पृथ्वीकायिक जीवों से लेकर मनुष्यों पर्यन्त विमात्रा से वेदना वेदते हैं। इसी कारण से हे गौतम ! उपर्युक्त रूप से कहा गया है ।
[३२३] भगवन् ! नैरयिक जीव जिन पुद्गलों का आत्मा (अपने) द्वारा ग्रहण-आहार करते हैं, क्या वे आत्म-शरीरक्षेत्रावगाढ़ पुद्गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं ? या अनन्तरक्षेत्रावगाढ़ पुद्गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं ? अथवापरम्परक्षेत्रावगाढ़ पुद्गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं ? गौतम ! वे आत्म-शरीरक्षेत्रावगाढ़ पुद्गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं, किन्तु न तो अनन्तरक्षेत्रावगाढ़ पुद्गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं और न ही परम्परक्षेत्रावगाढ़ पुद्गलों को आत्मा द्वारा ग्रहण करते हैं । जिस प्रकार नैरयिकों के लिए कहा, उसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त दण्डक कहना चाहिए ।
[३२४] भगवन् ! क्या केवली भगवान् इन्द्रियों द्वारा जानते-देखते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! केवली भगवान् पूर्व दिशा में मित को भी जानते हैं और अमित को भी जानते हैं; यावत् केवली का (ज्ञान और) दर्शन परिपूर्ण और निरावरण होता है । हे गौतम ! इस कारण से ऐसा कहा जाता है ।
[३२५] जीवों का सुख-दुःख, जीव, जीव का प्राणधारण, भव्य, एकान्तदुःखवेदना, आत्मा द्वारा पुद्गलों का ग्रहण और केवली, इतने विषयों दसवें उद्देशक में है । [३२६] 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है' । शतक-६ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(शतक-७) [३२७] आहार, विरति, स्थावर, जीव, पक्षी, आयुष्य, अनगार, छद्मस्थ, असंवृत और अन्यतीर्थिक; ये दश उद्देशक सातवें शतक में हैं ।
शतक-७ उद्देशक-१ ३२८] उस काल और उस समय में, यावत् गौतमस्वामी ने पूछा- भगवन् ! (परभव में जाता हुआ) जीव किस समय में अनाहारक होता है ? गौतम ! (परभव में जाता हुआ) जीव, प्रथम समय में कदाचित् आहारक होता है और कदाचित् अनाहारक होता है; द्वितीय समय में भी कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक होता है, तृतीय समय में भी कदाचित आहारक और कदाचित् अनाहारक होता है; परन्तु चौथे समय में नियमतः आहारक होता है । इसी प्रकार नैरयिक आदि चौबीस ही दण्डकों में कहना । सामान्य जीव और एकेन्द्रिय ही चौथे समय में आहारक होते हैं । शेष जीव, तीसरे समय में आहारक होते हैं |
भगवन् ! जीव किस समय में सबसे अल्प आहारक होता है ? गौतम ! उत्पत्ति के प्रथम समय में अथवा भव के अन्तिम समय में जीव सबसे अल्प आहार वाला होता है । इसी प्रकार वैमानिकपर्यन्त चौवीस ही दण्डकों में कहना चाहिए ।