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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
भी कहना चाहिए । इतना विशेष है कि वहाँ देव भी करते हैं, असुर भी करते हैं, किन्तु नाग (कुमार) नहीं करते । चौथी पृथ्वी में भी इसी प्रकार सब बातें कहनी चाहिए । इतना विशेष है कि वहाँ देव ही अकेले करते हैं, किन्तु असुर और नाग नहीं करते । इसी प्रकार पांचवीं, छठी और सातवीं पृथ्वीयों में केवल देव ही (यह सब) करते हैं ।
भगवन् ! क्या सौधर्म और ईशान कल्पों के नीचे गह अथवा गृहापण हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या सौधर्म और ईशान देवलोक के नीचे महामेघ हैं ? हाँ, गौतम ! हैं । (सौधर्म और ईशान देवलोक के नीचे पूर्वोक्त सब कार्य) देव और असुर करते हैं, नागकुमार नहीं करते । इसी प्रकार वहाँ स्तनितशब्द के लिए भी कहना ।
भगवन् ! क्या वहाँ बादर पृथ्वीकाय और बादर अग्निकाय है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं । यह निषेध विग्रहगतिसमापन्न जीवों के सिवाय दूसरे जीवों के लिए जानना चाहिए । भगवन् ! क्या वहाँ चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारारूप हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या वहाँ ग्राम यावत् सन्निवेश हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या यहाँ चन्द्राभा, सूर्याभा आदि हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ।
इसी प्रकार सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोकों में भी कहना । विशेष यह है कि वहाँ (यह सब) केवल देव ही करते हैं । इसी प्रकार ब्रह्मलोक में भी कहना । इसी तरह ब्रह्मलोक से ऊपर सर्वस्थलों में पूर्वोक्त प्रकार से कहना । इन सब स्थलों में केवल देव ही (पूर्वोक्त कार्य) करते हैं । इन सब स्थलों में बादर अप्काय, बादर अग्निकाय और बादर वनस्पतिकाय के विषय में प्रश्न करना । उनका उत्तर भी पूर्ववत् कहना । अन्य सब बातें पूर्ववत् ।
[३१४] तमस्काय में और पांच देवलोकों तक में अग्निकाय और पृथ्वीकाय के सम्बन्ध में प्रश्न करना चाहिए । रत्नप्रभा आदि नरकपृथ्वीयों में अग्निकाय के सम्बन्ध में प्रश्न करता चाहिए । इसी तरह पंचम कल्प-देवलोक से ऊपर सब स्थानों में तथा कृष्णराजियों में अप्काय, तेजस्काय और वनस्पतिकाय के सम्बन्ध में प्रश्न करना चाहिए ।
[३१५] भगवन् ! आयुष्यबन्ध कितने प्रकार का है ? गौतम ! छह प्रकार काजातिनामनिधत्तायु, गतिनामनिधत्तायु, स्थितिनामनिधत्तायु, अवगाहनानामनिधत्तायु, प्रदेशनानिधत्तायु और अनुभागनामनिधत्तायु । यावत् वैमानिकों तक दण्डक कहना ।।
भगवन् ! क्या जीव जातिनामनिधत्त हैं ? गतिनामनिधत्त हैं ? यावत् अनुभाग नामनिधत्त हैं ? गौतम ! जीव जातिनामनिधत्त भी हैं, यावत् अनुभागनामनिधत्त भी हैं । यह दण्डक यावत वैमानिक तक कहना चाहिए । भगवन् ! क्या जीव जातिनामनिधत्तायुष्क हैं, यावत् अनुभागनामनिधत्तायुष्क हैं ? गौतम ! जीव जातिनामनिधत्तायुष्क भी हैं, यावत् अनुभागनामनिधत्तायुष्क भी हैं । यह दण्डक यावत् वैमानिक तक कहना चाहिए ।
___इस प्रकार ये बारह दण्डक कहने चाहिए । भगवन् ! क्या जीव जातिनामनिधत्त हैं ? जातिनामनिधत्तायु हैं ?, जातिनामनियुक्त हैं ?, जातिनामनियुक्तायु हैं ?, जातिगोत्रनिधत्त हैं ?, जातिगोत्रनिधत्तायु हैं ?, जातिगोत्रनियुक्त हैं ?, जातिगोत्रनियुक्तायु हैं ?, जातिनामगोत्रनिधत्त हैं ?, जातिनामगोत्रनिधत्तायु हैं ?, क्या जीव जातिनामगोत्रनियुक्तायु हैं ? यावत् अनुभागनामगोत्रनियुक्तायु हैं ? गौतम ! जीव जातिनामनिधत्त भी हैं यावत् अनुभागनामगोत्रनियुक्तायु भी हैं । यह दण्डक यावत् वैमानिकों तक कहना ।