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________________ १४८ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद स्वाभाविक रूप से भी होता है । भगवन् ! जिस प्रकार वस्त्र में पुद्गलों का उपचय प्रयोग से और स्वाभाविक रूप से होता है, तो क्या उसी प्रकार जीवों के कर्मपुद्गलों का उपचय भी प्रयोग से और स्वभाव से होता है ? गौतम ! जीवों के कर्मपुद्गलों का उपचय प्रयोग से होता है, किन्तु स्वाभाविक रूप से नहीं होता । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! जीवों के तीन प्रकार के प्रयोग कहे गए है - मनः प्रयोग, वचनप्रयोग और कायप्रयोग । इन तीन प्रयोग के प्रयोगों से जीवों के कर्मों का उपचय कहा गया है । इस प्रकार समस्त पंचेन्द्रिय जीवों के तीन प्रकार का प्रयोग कहना चाहिए । पृथ्वीकायिक से लेकर वनस्पतिकायिक जीवों तक के एक प्रकार के (का) प्रयोग से (कर्मपुद्गलोपचय होता है ।) विकलेन्द्रिय जीवों के दो प्रकार के प्रयोग होते हैं, यथा - वचन - प्रयोग और काय प्रयोग । इस प्रकार उनके इन दो प्रयोगों से कर्म (पुद्गलों) का उपचय होता है । अतः समस्त जीवों के कर्मोपचय प्रयोग से होता है, स्वाभाविकरूप से नहीं । इसी कारण से कहा गया है कि... यावत् स्वाभाविक रूप से नहीं होता । इस प्रकार जिस जीव का जो प्रयोग हो, वह कहना चाहिए । यावत् वैमानिक तक प्रयोगों से कर्मोपचय का कथन करना चाहिए । [ २८२ ] भगवन् ! वस्त्र में पुद्गलों का जो उपचय होता है, वह सादि - सान्त है, सादिअनन्त है, अनादि-सान्त है, अथवा अनादि - अनन्त है ? गौतम ! वस्त्र में पुद्गलों का जो उपचय होता है, वह सादि - सान्त होता है, किन्तु न तो वह सादि - अनन्त होता है, न अनादिसान्त होता है और न अनादि - अनन्त होता है । हे भगवन् ! जिस प्रकार वस्त्र में पुद्गलोपचय सादि - सान्त है, किन्तु सादि - अनन्त, अनादि- सान्त और अनादि - अनन्त नहीं है, क्या उसी प्रकार जीवों का कर्मोपचय भी सादिसान्त है, सादि - अनन्त है, अनादि- सान्त है, अथवा अनादि - अनन्त है ? गौतम ! कितने ही जीवों का कर्मोपचय सादि - सान्त है, कितने ही जीवों का कर्मोपचय अनादि - सान्त है और कितने ही जीवों का कर्मोपचय अनादि - अनन्त है, किन्तु जीवों का कर्मोपचय सादि - अनन्त नहीं है । भगवन् ! यह किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! ईर्यापथिक-बन्धक का कर्मोपचय सादि - सान्त है, भवसिद्धिक जीवों का कर्मोपचय अनादि - सान्त है, अभवसिद्धिक जीवों का कर्मोपचय अनादि - अनन्त है । इसी कारण हे गौतम ! उपर्युक्त रूप से कहा है । भगवन् ! क्या वस्त्र सादि- सान्त है ? इत्यादि पूर्वोक्त रूप से चार भंग करके प्रश्न करना चाहिए । गौतम ! वस्त्र सादि - सान्त है; शेष तीन भंगों का वस्त्र में निषेध करना चाहिए । भगवन् ! जैसे वस्त्र आदि - सान्त है, किन्तु सादि - अनन्त नहीं है, अनादि - सान्त नहीं है और न अनादि - अनन्त है, वैसे जीवों के लिए भी चारों भंगों को ले कर प्रश्न करना चाहिएगौतम ! कितने ही जीव सादि- सान्त हैं, कितने ही जीव सादि - अनन्त हैं, कई जीव अनादिसान्त हैं और कितनेक अनादि - अनन्त हैं । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! नैरयिक, तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य तथा देव गति और आगति की अपेक्षा से सादि - सान्त हैं; सिद्धगति की अपेक्षा से सिद्धजीव सादि - अनन्त हैं; लब्धि की अपेक्षा भवसिद्धिक जीव अनादि - सान्त हैं और संसार की अपेक्षा अभवसिद्धिक जीव अनादि - अनन्त हैं ।
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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