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________________ १०८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद की धुरी आरों से व्याप्त होती है, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी वैक्रिय समुद्घात से समवहत होकर सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को, बहुत-से स्त्रीरूपों से आकीर्ण, व्यतिकीर्ण यावत् कर सकता है; हे गौतम ! भावितात्मा अनगार का यह विषय है, विषयमात्र है; उसने इतनी वैक्रियशक्ति सम्प्राप्त होने पर भी कभी इतनी विक्रिया की नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं । इस प्रकार से यावत् स्यन्दमानिका-रूपविकुर्वणा करने तक कहना । (हे भगवन् !) जैसे कोई पुरुष तलवार और चर्मपात्र (हाथ में) ले कर जाता है, क्या उसी प्रकार कोई भावितात्मा अनगार की तलवार और ढाल हाथ में लिये हुए किसी कार्यवश स्वयं आकाश में ऊपर उड़ सकता है ? हाँ, (गौतम !) वह ऊपर उड़ सकता है । भगवन् ! भावितात्मा अनगार कार्यवश तलवार एवं ढाल हाथ में लिये हुए पुरुष के जैसे कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? गौतम ! जैसे कोई युवक अपने हाथ से युवती के हाथ को पकड़ लेता है, यावत् (वैक्रियकृत रूपों से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को ठसाठस भर सकता है;) किन्तु कभी इतने वैक्रियकृत रूप बनाये नहीं, बनाता नहीं और बनायेगा भी नहीं ।। - जैसे कोई पुरुष एक पताका लेकर गमन करता है, इसी प्रकार क्या भावितात्मा अनगार भी कार्यवश हाथ में एक पताका लेकर स्वयं ऊपर आकाश में उड़ सकता है ? हाँ, गौतम ! वह आकाश में उड़ सकता है । भगवन् ! भावितात्मा अनगार, कार्यवश हाथ में एक पताका लेकर चलने वाले पुरुष के जैसे कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? गौतम ! यहाँ सब पहले की तरह कहना चाहिए, परन्तु कदापि इतने रूपों की विकुर्वणा की नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं । इसी तरह दोनों ओर पताका लिये हुए पुरुष के जैसे रूपों की विकुर्वणा के सम्बन्ध में कहना चाहिए । भगवन् ! जैसे कोई पुरुष एक तरफ यज्ञोपवीत धारण करके चलता है, उसी तरह क्या भावितात्मा अनगार भी कार्यवश एक तरफ यज्ञोपवीत धारण किये हुए पुरुष की तरह स्वयं ऊपर आकाश में उड़ सकता है । हाँ, गौतम ! उड़ सकता है । भगवन् ! भावितात्मा अनगार कार्यवश एक तरफ यज्ञोपवीत धारण किये हुए पुरुष के जैसे कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? गौतम ! पहले कहे अनुसार जान लेना चाहिए । परन्तु इतने रूपों की विकुर्वणा कभी की नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं । इसी तरह दोनों ओर यज्ञोपवीत धारण किये हुए पुरुष की तरह रूपों की विकुर्वणा करने के सम्बन्ध में भी जान लेना चाहिए । भगवन ! जैसे कोई पुरुष, एक तरफ पल्हथी (पालथी) मार कर बैठे, इसी तरह क्या भावितात्मा अनगार भी रूप बना कर स्वयं आकाश में उड़ सकता है ? हे गौतम ! पूर्ववत् जानना । यावत्-इतने विकुर्वितरूप कभी बनाए नहीं, बनाता नहीं और बनायेगा भी नहीं । इसी तरह दोनों तरफ पल्हथी लगाने वाले पुरुष के समान रूपविकुर्वणा जान लेना । भगवन् ! जैसे कोई पुरुष एक तरफ पर्यंकासन करके बैठे, उसी तरह क्या भावितात्मा अनगार भी उस पुरुष के समान रूप-विकुर्वणा करके आकाश में उड़ सकता है ? (गौतम !) पहले कहे अनुसार जानना चाहिए । यावत्-इतने रूप कभी विकुर्वित किये नहीं, करता नहीं, और करेगा भी नहीं । इसी तरह दोनों तरफ पर्यंकासन करके बैठे हुए पुरुष के समान रूपविकुर्वणा करने के सम्बन्ध में जान लेना चाहिए । भगवन् ! भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किये बिना एक बड़े अश्व
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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