SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद आपको देखते ही - 'हा हा ! अरे रे ! मैं मारा गया ।' ये उद्गार मेरे मुख से निकल पड़े ! फिर मैं उत्कृष्ट यावत् दिव्य देवगति से जहाँ आप देवानुप्रिय विराजमान हैं, वहाँ आया; और आप देवानुप्रिय से सिर्फ चार अंगुल दूर रहे हुए वज्र को मैंने पकड़ लिया । मैं वज्र को वापस ने के लिए ही यहाँ सुंसुमारपुर में और इस उद्यान में आया हूँ और अभी यहाँ हूँ । अतः भगवन् ! मैं आप देवानुप्रिय से क्षमा मांगता हूँ । आप देवानुप्रिय मुझे क्षमा करें । आप देवानुप्रिय क्षमा करने योग्य हैं । मैं ऐसा (अपराध) पुनः नहीं करूंगा ।' यों कह कर शक्रेन्द्र मुझे वन्दन - नमस्करा करके ईशानकोण में चला गया । वहाँ जा कर शक्रेन्द्र ने अपने बांयें पैर को तीन बार भूमि पर पछाड़ा । यों करके फिर उसने असुरेन्द्र असुरराज चमर से इस प्रकार कहा - 'हे असुरेन्द्र असुरराज चमर ! आज तो तू श्रमण भगवान् महावीर के ही प्रभाव से बच ( मुक्त हो) गया है, (जा) अब तुझे मुझ से (किंचित् भी) भय नहीं है; यों कह कर वह शक्रेन्द्र जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में वापस चला गया । १०० [१७५] 'हे भगवन् !' यों कह कर भगवान् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दन - नमस्कार किया । वन्दन - नमस्कार करके इस प्रकार कहा ( पूछा ) 'भगवन् ! महाऋद्धिसम्पन्न, महाद्युतियुक्त यावत् महाप्रभावशाली देव क्या पहले पुद्गल को फैंक कर, फिर उसके पीछे जा कर उसे पकड़ लेने में समर्थ है ? हाँ, गौतम ! वह समर्थ है । भगवन् ! किस कारण से देव, पहले फैंके हुए पुद्गल को, उसका पीछा करके यावत् ग्रहण करने में समर्थ है ? गौतम ! जब पुद्गल फैंका जाता है, तब पहले उसकी गति शीघ्र (तीव्र) होती है, पश्चात् उसकी गति मन्द हो जाती है, जबकि महर्द्धिक देव तो पहले भी और पीछे (बाद में) भी शीघ्र और शीघ्रगति वाला तथा त्वरित और त्वरितगति वाला होता है । अतः इसी कारण से देव, फैंके हुए पुद्गल का पीछा करके यावत् उसे पकड़ सकता है । भगवन् ! महर्द्धिक देव यावत् पीछा करके फैंके हुए पुद्गल को पकड़ने में समर्थ है, तो देवेन्द्र देवराज शक्र अपने हाथ से असुरेन्द्र असुरराज चमर को क्यों नहीं पकड़ सका ? गौतम ! असुरकुमार देवों का नीचे गमन का विषय शीघ्र शीघ्र और त्वरित - त्वरित होता है, और ऊर्ध्वगमन विषय अल्प - अल्प तथा मन्द मन्द होता है, जबकि वैमानिक देवों का ऊँचे जाने का विषय शीघ्र - शीघ्र तथा त्वरित - त्वरित होता है और नीचे जाने का विषय अल्प- अल्प तथा मन्द मन्द होता है । एक समय में देवेन्द्र देवराज शक्र, जितना क्षेत्र ऊपर जा सकता है, उतना क्षेत्र - ऊपर जाने में वज्र को दो समय लगते हैं और चमरेन्द्र को तीन समय लगते हैं । ( अर्थात्- ) देवेन्द्र देवराज शक्र का ऊपर जाने में लगने वाला कालमान सबसे थोड़ा है, और अधोलोककंडक उसकी अपेक्षा संख्येयगुणा है । एक समय में असुरेन्द्र असुरराज चमर जितना क्षेत्र नीचा जा सकता है, उतना ही क्षेत्र नीचा जाने में शक्रेन्द्र को दो समय लगते हैं और उतना ही क्षेत्र नीचा जाने में वज्र को तीन समय लगते हैं । ( अर्थात्- ) असुरेन्द्र असुरराज चमर का नीचे गमन का कालमान सबसे थोड़ा है और ऊँचा जाने का कालमान उससे संख्येयगुणा है । इस कारण से हे गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र, अपने हाथ से असुरेन्द्र असुरराज चमर को पकड़ने में समर्थ न हो सका । हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र का ऊर्ध्वगमन विषय, अधोगमन विषय और तिर्यग्गमन विषय, इन तीनों में कौन-सा विषय किन किन से अल्प है, अधिक है और तुल्य है, अथवा
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy