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स्थान-४/४/३७०
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के करंडिये समान आचार्य जिनागमों के मर्मज्ञ एवं आचार्य के समस्तगुण युक्त होते हैं ।
[३७१] वृक्ष चार प्रकार के हैं । यथा-एक वृक्ष शाल (महान्) है और शाल के (छायादि) गुण युक्त है । एक वृक्ष शाल (महान्) है किन्तु गुणों में एरण्ड समान है । एकवृक्ष एरण्ड समान (अत्यल्प विस्तारवाला) है किन्तु गुणों से शाल (महावृक्ष) के समान हे । एक वृक्ष एरण्ड है और गुणों से भी एरण्ड जैसा ही है । इसी प्रकार आचार्य चार प्रकार के हैं । एक आचार्य शाल समान महान (उत्तम जाति कुल) हैं और ज्ञानक्रियादि महान गुणयुक्त हैं ।एक आचार्य महान् है किन्तु ज्ञान-क्रियादि गुणहीन है । एक आचार्य एरण्ड समा (जातिकुल-गुरु आदि से सामान्य) है किन्तु ज्ञानक्रियादि महान् गुणयुक्त हैं । एक आचार्य एरण्ड समान है और ज्ञान-क्रियादि गुणहीन है ।
__ वृक्ष चार प्रकार के हैं । यथा-एक वृक्ष शाल (महान्) है और शालवृक्ष समान महान् वृक्षों से परिवृत हैं । एक वृक्ष शाल समान महान् है किन्तु एरण्ड समान तुच्छ वृक्षों से परिवृत हैं । एक वृक्ष एरण्ड समान तुच्छ है किन्तु शाल समान महान् वृक्षों से परिवृत हैं । एक वृक्ष एरण्ड समान तुच्छ है और एरण्ड समान तुच्छ वृक्षों से परिवृत है । इसी प्रकार आचार्य भी चार प्रकार हैं । एक आचार्य शाल वृक्ष समान महान् गुणयुक्त है और शाल परिवार समान श्रेष्ठ शिष्य परिवारयुक्त हैं । एक आचार्य शालवृक्ष समान उत्तम गुण युक्त है किन्तु एरण्ड परिवार समान कनिष्ठ शिष्यपरिवार युक्त है । एक आचार्य एरण्ड परिवार समान कनिष्ठ शिष्यपरिवार युक्त हैं किन्तु स्वयं शाल वृक्ष समान महान् उत्तम गुण युक्त हैं ।एक आचार्य एरण्ड समान कनिष्ठ और एरण्ड परिवार समान कनिष्ठ शिष्यपरिवार युक्त है ।
[३७२] महावृक्षों के मध्य में जिस प्रकार वृक्ष राज शाल सुशोभित होता है उसी प्रकार श्रेष्ठ शिष्यों के मध्य में उत्तम आचार्य सुशोभित होते हैं ।
[३७३] एरण्ड वृक्षों के मध्य में जिस प्रकार वृक्षराज शाल दिखाई देता है । उसी प्रकार कनिष्ठ शिष्यों के मध्य में उत्तम आचार्य मालुम पड़ते हैं ।
[३७४] महावृक्षों के मध्य में जिस प्रकार एरण्ड दिखाई देता है उसी प्रकार श्रेष्ठ शिष्यों के मध्यमें कनिष्ठ आचार्य दिखाई देते हैं ।
[३७५] एरण्ड वृक्षों के मध्य में जिस प्रकार एक एरण्ड प्रतीत होता हैं उसी प्रकार कनिष्ठ शिष्यों के मध्य में कनिष्ठ आचार्य प्रतीत होते हैं ।
[३७६] मत्स्य चार प्रकार के हैं । यथा-एक मत्स्य नदी के प्रवाह के अनुसार चलता है । एक मत्स्य नदी के प्रवाह के सन्मुख चलता हैं । एक मत्स्य नदी के प्रवाह के किनारे चलता हैं । एक मत्स्य नदी के प्रवाह के मध्य में चलता हैं । इसी प्रकार भिक्षु (श्रमण) चार प्रकार के हैं । यथा-एक भिक्षु उपाश्रय के समीप गृह से भिक्षा लेना प्रारम्भ करता हैं । एक भिक्षु किसी अन्य गृह से भिक्षा लेता हुआ उपाश्रय तक पहुँचता है । एक भिक्षु धरों की
अन्तिम पंक्तियों से भिक्षा लेता हुआ उपाश्रय तक पहुँचता है । एक भिक्षु गांव के मध्य भाग से भिक्षा लेता है ।
गोले चार प्रकार के होते हैं । यथा-मीण का गोला, लाख का गोला, काष्ठ का गोला मिट्टी का गोला । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । एक पुरुष मीण के गोले के समान कोमल हृदय होता है । एक पुरुष लाख के गोले के समान कुछ कठोर हृदय होता है । एक |2|7