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स्थान-४/२/२९५
भांगे हैं । कुल सम्पन्न और रूप सम्पन्न वृषभ के चार भांगे हैं । इसी प्रकार पुरुष वर्ग के भी चार भांगे हैं । बल सम्पन्न और रूप सम्पन्न वृषभ के चार भांगे हैं । इसी प्रकार पुरुष वर्ग के भी चार भांगे हैं ।
हाथी चार प्रकार के हैं । वे इस प्रकार हैं- भद्र, मंद, मृग और संकीर्ण इसी प्रकार पुरुष वर्ग भी चार प्रकार का कहा गया हैं ।
हाथी चार प्रकार के हैं । वे इस प्रकार हैं-१. एक भद्र है और भद्रमन वाला है । एक भद्र हैं किन्तु मंदमन वाला हैं । एक भद्र है किन्तु मृग (भीरु) मन वाला हैं । एक भद्र है किन्तु संकीर्ण मनवाला हैं । इसी प्रकार परुष वर्ग भी चार प्रकार का है।
हाथी चार प्रकार के हैं । वे इस प्रकार हैं- एक मंद किन्तु भद्रमन वाला है । एक मंद हैं और मंदमन वाला है । एक मंद हैं किन्तु मृग (भीरु) मनवाला हैं । एक मंद हैं किन्तु संकीर्ण (विचित्र) मनवाला हैं । इसी प्रकार पुरुष वर्ग भी चार प्रकार का कहा गया हैं ।
हाथी चार प्रकार के हैं । वे इस प्रकार हैं-एक मृग (भीरु) है और भद्र (भीरु) मनवाला हैं । एक मृग है किन्तु मंद मनवाला हैं । एक मृग है और मृग मनवाला भी हैं । एक मृग है किन्तु संकीर्ण मनवाला हैं । इसी प्रकार पुरुष वर्ग भी चार प्रकार का हैं ।
हाथी चार प्रकार के हैं । वे इस प्रकार के हैं एक संकीर्ण है किन्तु भद्र मनवाला हैं । एक संकीर्ण है किन्तु मंद मनवाला हैं । एक संकीर्ण हैं किन्तु मृग मनवाला हैं । इसी प्रकार पुरुष वर्ग भी चार प्रकार का कहा गया हैं ।
[२९६] मधु की गोली के समान पिंगल नेत्र, क्रमशः पतली सुन्दर एवं लम्बी पूंछ, उन्नत मस्तक आदि से सर्वाङ्ग सुन्दर भद्र हाथी धीर प्रकृति का होता हैं ।
. [२९७] चंचल, स्थूल एवं कहीं पतली और कहीं मोटी चर्म वाला स्थूल मस्तक, पूंछ, नख, दांत एवं केशवाला तथा सिंह के समान पिंगल नेत्रवाला हाथी मंद प्रकृति का होता हैं ।
[२९८] कृश शरीर और कृश ग्रीवावाला, पतले चर्म, नख, दांत एवं केशवाला, भयभीत, स्थिरकर्ण, उद्विग्रता पूर्वक गमन करनेवाला स्वयं त्रस्त और अन्यों को त्रास देने वाला हाथी मृग प्रकृति का होता हैं ।
[२९९] जिस हाथी में भद्र, मंद और मृग प्रकृति के हाथियों के थोड़े थोड़े लक्षण हों तथा विचित्र रूप और शील वाला हाथी संकीर्ण प्रकृति का होता हैं ।
[३००] भद्र जाति का हाथी शरद् ऋतु में मतवाला होता हैं, मंद जाति का हाती बसंत ऋतु में मतवाला होता हैं, मृग जाति का हाथी हेमंत ऋतु में मतवाला होता हैं, और संकीर्ण जाति का हाथी किसी भी ऋत में मतवाला हो सकता हैं।
[३०१] विकथा चार प्रकार की हैं-यथा-स्त्रीकथा, भक्तकथा, देशकथा और राजकथा
स्त्रीकथा चार प्रकार की हैं- स्त्रियों की जाति सम्बन्धी कथा, स्त्रियों की कुल सम्बन्धी कथा, स्त्रियों की रूप सम्बन्धी कथा, स्त्रियों की नेपथ्य सम्बन्धी कथा ।
भक्तकथा चार प्रकारकी हैं-यथा भोजन सामग्री की कथा, विविध प्रकार के पकवानों और व्जजनों की कथा, भोजन बनाने की विधियों की कथा, भोजन निर्माण में होनेवाले व्यय की कथा ।
देशकथा चार प्रकार की हैं- देश के विस्तार की कथा, देश में उत्पन्न होनेवाले धान्य