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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
अगार अवस्था से अनगार रूप में दीक्षित होने पर पांच महाव्रतों में शंका करे-यावत्-कलुषित भाववाला होता हैं और इस प्रकार वह कलुषित पंच महाव्रतों में श्रद्धा नहीं रखता-यावत्-वह परीषहों को पराजित नहीं कर सकता हैं ?।
कोई व्यक्ति मुण्डित होकर और अगार से अनागार दीक्षा को अंगीकार करने पर षट् जीव निकाय में श्रद्धा नहीं करता हैं, -यावत्-वह परीषहों को पराजित नहीं कर सकता हैं,
सम्यक् निश्चय करनेवाले के तीन स्थान हित कर -यावत्-शुभानुबन्धी होते हैं, यथाकोई व्यक्ति मुण्डित होकर गृहस्थावस्था से अनागार धर्म में प्रव्रजित होने पर निग्रन्थ प्रवचन में शंका नहीं लाता हैं अन्यमत की कांक्षा नहीं करता हैं-यावत्-कलुषभाव को प्राप्त न होकर निर्ग्रन्थ प्रवचन में श्रद्धा रखता हैं, विश्वास रखता हैं और रुचि रखता हैं तो वह परीषहों को पराजित कर देता हैं । परीषह उसे पराजित नहीं कर सकते हैं । कोई व्यक्ति मुण्डित होकर
और गृहस्थावस्था से अनगार धर्म में प्रव्रजित होकर पांच महाव्रतों में शंका नहीं करता हैं, कांक्षा नहीं करता हैं-यावत्-वह परीषहों को पराजित करता हैं, परीषह उसे पराजित नहीं कर सकते हैं । कोई व्यक्ति मुण्डित होकर गृहस्थावस्था से अनगार अवस्था में प्रव्रजित होकर षट् जीवनिकाय में शंका नहीं करता हैं- यावत्-वह परीषहों को पराजित कर देता है । उसे परीषह पराजित नहीं कर सकते हैं ।
[२३८] रत्नप्रभादि प्रत्येक पृथ्वी तीन वलयों के द्वारा चारों तरफ से घिरी हुई हैं, यथा-घनोदधिवलयसे, घनवातवलयसे और तनुवातवलयसे ।
[२३९] नैरयिक जीवन उत्कृष्ट तीन समयवाली विग्रह-गति से उत्पन्न होते हैं । एकेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त ऐसा जानना चाहिए
[२४०] क्षीण मोह वाले अर्हन्त तीन कर्मप्रकृतियों का एकसाथ क्षय करते हैं, यथाज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तराय ।
[२४१] अभिजित् नक्षत्र के तीन तारे कहे गये हैं । इसी तरह श्रवण, अश्विनी, भरणी, मृगशिर, पुष्य और ज्येष्ठा के भी तीन तीन-तारे हैं ।
[२४२] श्री धर्मनाथ तीर्थकर के पश्चात् त्रिचतुर्थांश, पल्योपम न्यून सागरोपम व्यतीत हो जाने के बाद श्री शान्तिनाथ भगवान् उत्पन्न हुए ।
[२४३] श्रमण “भगवान्” महावीर से लेकर तीसरे युगपुरुष पर्यन्त मोक्षगमन कहा गया हैं । मल्लिनाथ भगवान् ने तीनसौ पुरुषों के साथ मुण्डित होकर प्रव्रज्या धारण की थी । इसी तरह पार्श्वनाथ भगवान् ने भी की थी ।
[२४४] श्रमण भगवान् महावीर के जिन नहीं किन्तु जिन के समान, सर्वाक्षरसन्निपाती 'सब भाषाओं के वेत्ता' और जिन के समान यथातथ्य कहनेवाले चौदह पूर्वधर मुनियों की उत्कृष्ट सम्पदा ‘संख्या' तीन सौ थी ।
[२४५] तीन तीर्थकर चक्रवर्ती थे, यथा-शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ ।
[२४६] ग्रैवेयक विमान प्रस्तर 'समूह' तीन हैं, यथा-अधस्तनौवेयक विमानप्रस्तर, मध्यमग्रैवेयक विमानप्रस्तर, उपरितनौवेयक विमानप्रस्तर । अधस्तन ग्रैवेयक विमानप्रस्तर तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा-अधस्तनाधस्तन ग्रैवेयक विमानप्रस्तर, अधस्तनमध्यम ग्रैवेयक विमानप्रस्तर, अधस्तनोपरितन ग्रैवेयकविमान प्रस्तर । मध्यम ग्रैवेयक विमानप्रस्तर तीन प्रकार