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स्थान-२/३/८८
प्रवाहित होती हैं, उनके नाम । शीता और नारीकान्ता । इसी तरह रुक्मि वर्षधर पर्वत के महापुण्डरीक द्रह में से दो महानदियाँ प्रवाहित होती हैं, नाम । नरकान्ता और रुप्यकूला ।
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण भरत क्षेत्र में दो प्रपातदह हैं जो अतिसमान हैं - यावत्-उनके नाम । गंगाप्रपात द्रह और सिन्धुप्रपात द्रह । इसी तरह हैमवतवर्ष में दो प्रपात द्रह हैं जो बहुसमान हैं-यावत्-उनके नाम । रोहित-प्रपात द्रह और रोहितांश-प्रपात द्रह । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में हविर्ष क्षेत्र में दो प्रपात द्रह हैं जो अति समान हैंयावत्-उनके नाम । हरि पर्वत द्रह और हरिकान्त प्रपात द्रह । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर
और दक्षिण में महाविदेह वर्ष में दो प्रपात द्रह हैं जो अतिसमान हैं-यावत्-उनके नाम । शीता प्रपात द्रह और शीतोदा प्रपात द्रह । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर में रम्यक् वर्ष में दो प्रपात द्रह हैं जो बहुसमान है-यावत्-उनके नाम । नरकान्त प्रपात द्रह और नारीकान्त प्रपात द्रह । इसी तरह हेरण्यवत में दो प्रपात द्रह हैं उनके नाम | सुवर्णकूल प्रपात द्रह और रुप्यकूल प्रपात द्रह । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर मे ऐवत वर्ष में दो प्रपात द्रह हैं और अतिसमान हैं-यावत्-उनके नाम रक्त प्रपात द्रह और रक्तावती प्रपात द्रह ।
- जम्द्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में भरत वर्ष में दो महानदियाँ हैं जो अतिसमान हैं । -यावत्-उनके नाम । गंगा और सिन्धु । इसी तरह जितने प्रपात द्रह कहे गये हैं उतनी नदियां भी समझ लेनी चाहिए-यावत्- ऐवत वर्ष में दो महानदियाँ हैं जो अतिसमान तुल्य हैं यावत्उनके नाम । रक्ता और रक्तवती ।
[८९] जम्बूद्वीपवर्ती भरत और ऐवत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी के सुषम दुःषम नामक आरे का काल को क्रोड़ा क्रोड़ी सागरापम का था । इसी तरह इस अवसर्पिणी के लिए भी समझना चाहिए । इसी तरह आगामी उत्सर्पिणी के : यावत्-सुषमदुषम आरे का काल दो क्रोड़ा क्रोड़ी सागरोपम होगा । जम्बूद्वीपवर्ती भरत-ऐवत क्षेत्र में गत उत्सर्पिणी के सुषम नामक आरे में मनुष्य दो कोस की ऊंचाई वाले थे । तथा दो पल्योपम की आयुवाले थे । इसी तरह इस अवसर्पिणी में-यावत्-आयुष्य था । इसी तरह आगामी उत्सर्पिणी में-यावत्आयुष्य होगा । जम्बूद्वीप में भरत और ऐवत क्षेत्र में एक समय में एक युग में दो अर्हत् वंश उत्पन्न हुये, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे । इसी तरह चक्रवर्ती वंश, इसी तरह दशार वंश । जम्बूद्वीपवर्ती भरत ऐवत क्षेत्र में एक समय में एक युग में दो अर्हन् उत्पन्न हुए, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे । इसी तरह दशार और चक्रवर्ती । इसी तरह बलदेव और वासुदेव दशार वंशी-यावत् उत्पन्न हुए, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे ।
जम्बूद्वीपवर्ती दोनों कुरु क्षेत्र में मनुष्य सदा सुषम-सुषम काल की उत्तम ऋद्धि को प्राप्त कर उनका अनुभव करते हुए रहते हैं, यथा- देवकुरु और उत्तरकुरु । जम्बूद्वीपवर्ती दो क्षेत्रों में मनुष्य सदा सुषम काल की उत्तम ऋद्धि को प्राप्त करके उसका अनुभव करते हुए रहते हैं, यथा-हरिवर्ष और रम्यक्वर्ष । जम्बूद्वीपवर्ती दो क्षेत्रों में मनुष्य सदा सुषम दुःषम की उत्तम ऋद्धि को प्राप्त करके उसका अनुभव करते हुए विचरते हैं, हेमवत और हिरण्यवत । जम्बूद्वीपवर्ती दो क्षेत्रों में मनुष्य सदा दुःषम सुषम की उत्तम ऋद्धि को प्राप्त करके उसका अनुभव करते हुए रहते हैं, यथा- पूर्व-विदेह और अपर-विदेह । जम्बूद्वीपवर्ती दो क्षेत्रों में मनुष्य छः प्रकार के काल का अनुभव करते हुए रहते हैं । यथा- भरत और ऐवत ।