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स्थान-२/१/७१
सयोगी-भवस्थ-केवलज्ञान दो प्रकार का कहा गया है, यथा-प्रथम-समय-सयोगी भवस्थकेवलज्ञान, अप्रथम-समय-सयोगी-भवस्थ-केवलज्ञान, अचरम-समय-सयोगी-भवस्थ-केवलज्ञान । इसी प्रकार-अयोगी-भवस्थ-केवलज्ञान के भी दो भेद जानने चाहिए ।
सिद्ध-केवलज्ञान के दो भेद कहे गये हैं, यथा-अनन्तर-सिद्ध-केवलज्ञान और परम्परसिद्ध-केवलज्ञान । अनन्तर सिद्ध केवलज्ञान दो प्रकार का कहा गया है, यथा-एकानन्तर सिद्ध केवलज्ञान, अनेकानन्तर सिद्ध केवलज्ञान । परम्परसिद्ध केवल ज्ञान दो प्रकार का कहा गया है, यथा-एक परम्पर सिद्ध केवल ज्ञान, अनेक परम्पर सिद्ध केवल ज्ञान ।
नो केवलज्ञान दो प्रकार का कहा गया है, अवधि ज्ञान और मनःपर्यव ज्ञान ।
अवधिज्ञान दो प्रकार का कहा गया है, यथा-भवप्रत्ययिक और क्षायोपशमिक । दो का अवधिज्ञान भवप्रत्ययिक कहा गया है, यथा-देवताओं का और नैरयिकों का । दो का अवधिज्ञान क्षायोपशमिक कहा गया है, यथा मनुष्यों का और तिर्यंच पंचेन्द्रियों का ।
मनःपर्यायज्ञान दो प्रकार का कहा गया है, यथा-ऋजुमति और विपुलमति । परोक्ष ज्ञान दो प्रकार का कहा गया है, यथा - आभिनिबोधिक ज्ञान और श्रुतज्ञान ।
__ आभिनिबोधिक ज्ञान दो प्रकार का कहा गया है, श्रुतनिश्रित और अश्रुतनिश्रित । श्रुतनिश्रित दो प्रकार का कहा गया है, यथा-अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह । अश्रुतनिश्रित के भी पूर्वोक्त दो भेद समझने चाहिए । श्रुतज्ञान दो प्रकार का कहा गया है, यथा-अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य । अंग-बाह्य के दो भेद कहे गये हैं, यथा-आवश्यक और आवश्यक-व्यतिरिक्त । आवश्यक-व्यतिरिक्त दो प्रकार का कहा गया हैं, यथा-कालिक और उत्कालिक ।
[७२] धर्म दो प्रकार का कहा गया है, यथा-श्रुत-धर्म और चारित्र-धर्म । श्रुत-धर्म दो प्रकार का कहा गया है, यथा-सूत्र-श्रुत-धर्म और अर्थ-श्रुत-धर्म । चारित्र धर्म दो प्रकार का कहा गया है, यथा- अगार-चारित्र-धर्म और अनगार-चारित्र-धर्म ।
संयम दो प्रकार का है, सराग-संयम और वीतराग-संयम । सराग-संयम दो प्रकार का है, सूक्ष्म-सम्परायसराग-संयम, बादर-सम्परायसराग-संयम । सूक्ष्म संपराय सराग संयम दो प्रकार का है ~ प्रथम समय-सूक्ष्मसंपराय सराग संयम, अप्रथम समय सूक्ष्म संपराय सराग संयम । अथवा चरम-समय-सूक्ष्म-सम्पराय-सराग-संयम, अचरम समयसूक्ष्म-सम्पराय-सराग-संयम | अथवा सूक्ष्म-सम्पराय-संयम दो प्रकार का है, 'संक्लिश्यमान' उपशम-श्रेणी से गिरते हुए जीव का, “विशुध्यमान' उपशम-श्रेणी पर चढ़ते हुए जीव का ।
बादर-सम्पराय-सराग-संयम दो प्रकार का है, प्रथम-समय-बादर-सम्पराय-सरागसंयम,अप्रथम-समय-बादर-सम्पराय-संयम । अथवा-चरम-समय-बादर-सम्पराय-सराग-संयम और अचरम बादर सम्पराय सराग संयम। अथवा बादर-सम्पराय-सराग-संयम दो प्रकार है, प्रतिपाती और अप्रतिपाती ।
वीतराग-संयम दो प्रकार का कहा गया है, यथा-उपशान्त-कषाय-वीतराग-संयम, क्षीणकषाय-वीतराग-संयम । उपशान्तकषाय वीतराग संयम दो प्रकार का है, प्रथम-समय-उपशान्तकषाय-वीतराग-संयम अप्रथम-समय-उपशान्त-कषाय-वीतराग-संयम, अथवा चरमसमय उपशान्त कषाय वीतराग संयम, अचरम-समय-उपशान्त-कषाय-वीतराग-संयम । क्षीण-कषाय-वीतरागसंयम दो प्रकार का है- छयस्थ-क्षीण-कषाय-वीतराग-संयम, केवली-क्षीण-कषाय-वीतराग