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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
प्रत्याख्यान करते हैं, कोई कोई प्राणी केवल वचन से प्रत्याख्यान करते हैं । अथवा-प्रत्याख्यान के दो भेद कहे गए हैं, यथा-कोई दीर्घकाल पर्यन्त प्रत्याख्यान करते हैं, कोई अल्पकालीन प्रत्याख्यान करते हैं ।
[६३] दो गुणों से युक्त अनगार अनादि, अनन्त, दीर्घकालीन चार गति रूप भवाटवी को पार कर लेता है, यथा- ज्ञान और चारित्र से ।
[६४] दो स्थानों को जाने बिना और त्यागे बिना आत्मा को केवली-प्ररूपित धर्म सुनने के लिए नहीं मिलता, यथा- आरभ और परिग्रह । दो स्थान जाने बिना और त्यागे बिना आत्मा शुद्ध सम्यक्त्व नहीं पाता हैं, यथा-आरम्भ और परिग्रह ।
दो स्थान जाने बिना और त्यागे बिना आत्मा गृहवास का त्याग कर और मुण्डित होकर शुद्ध प्रव्रज्या अंगीकार नहीं कर सकता है, यथा- आरम्भ और परिग्रह । इसी प्रकार
शुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकता है, शुद्ध संयम से अपने आपको संयत नहीं कर सकता हैं, शुद्ध संवर से संवृत नहीं हो सकता है, सम्पूर्ण मतिज्ञान नहीं प्राप्त कर सकता, सम्पूर्ण श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्यायज्ञान और केवल ज्ञान- नहीं प्राप्त कर सकता है ।
[६५] दो स्थानों को जान कर और त्याग कर आत्मा केवलि प्ररूपित धर्म सुन सकता है-यावत्-केवलज्ञान प्राप्त कर सकता है, यथा- आरम्भ और परिग्रह ।
[६६] दो स्थानों से आत्मा केवलि प्ररूपित धर्म सुन सकता है, -यावत्-केवलज्ञान प्राप्त कर सकता है । यथा-श्रद्धापूर्वक 'धर्मकी उपादेयता' सुनकर और समझकर
[६७] दो प्रकार का समय कहा गया है, यथा- अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी ।
[६८] उन्माद दो प्रकार का कहा गया है, यथा-यक्ष के प्रवेश से होने वाला, मोहनीय कर्म के उदय से होने वाला । इसमें जो यक्षावेश उन्माद है उसका सरलता से वेदन हो सकता है । तथा जो मोहनीय के उदय से होने वाला है उसका कठिनाई से वेदन होता है और उसे कठिनाई से ही दूर किया जा सकता है ।
[६९] दण्ड दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा- अर्थ-दण्ड और अनर्थ-दण्ड ।
नैयिक जीवों के दो दण्ड कहे गये हैं, यथा- अर्थ-दण्ड और अनर्थ-दण्ड । इसी तरह विमानवासी देव पर्यन्त चौबीस दण्डक समझ लेना चाहिए |
[७०] दर्शन दो प्रकार का कहा गया है, यथा-सम्यग्दर्शन और मिथ्यादर्शन ।
सम्यग्दर्शन के दो भेद कहे गये हैं, यथा-निसर्ग सम्यग्दर्शन और अभिगम सम्यग्दर्शन निसर्ग सम्यग्दर्शन के दो भेद गये कहे हैं, यथा-प्रतिपाति और अप्रतिपाति । अभिगम सम्यग्दर्शन के दो भेद कहे गये हैं, यथा-प्रतिपाति और अप्रतिपाति ।
मिथ्यादर्शन दो प्रकार का कहा गया है, यथा- अभिग्रहिक मिथ्यादर्शन और अनभिग्रहिक मिथ्यादर्शन । अभिग्रहिक मिथ्यादर्शन दो प्रकार का कहा गया हैं, यथा-सपर्यवसित (सान्त) और अपर्यवसित (अनन्त),इसी प्रकार अनभिग्रहिक मिथ्यादर्शन के भी दो भेद जानना ।
[७१] ज्ञान दो प्रकार का कहा गया है, यथा- प्रत्यक्ष और परोक्ष ।
प्रत्यक्ष ज्ञान दो प्रकार का कहा गया है, यथा-केवलज्ञान और नो केवलज्ञान । केवलज्ञान दो प्रकार का कहा गया हैं, यथा-भवस्थ-केवलज्ञान और सिद्ध-केवलज्ञान । भवस्थकेवलज्ञान दो प्रकार का है, यथा-सयोगी-भवस्थ-केवलज्ञान, अयोगी-भवस्थ-केवलज्ञान |