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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
समवाय-३९
[११५] नमि अर्हत् के उनतालीस सौ नियत क्षेत्र को जानने वाले अवधिज्ञानी मुनि थे । समय क्षेत्र (अढ़ाई द्वीप) में उनतालीस कुलपर्वत कहे गये हैं । जैसे—तीस वर्षधर पर्वत, पाँच मन्दर (मेरु) और चार इषुकार पर्वत ।
दूसरी, चौथी, पाँचवीं, छठी और सातवीं, इन पाँच पृथ्वीयों में उनचत्तालीस लाख नारकावास कहे गये हैं ।
ज्ञानावरणीय, मोहनीय, गोत्र और आयुकर्म, इन चारों कर्मों की उनचतालीस उत्तर प्रकृतियां कही गई हैं ।
समवाय-४०
[११६] अरिष्टनेमि अर्हन् के संघ में चालीस हजार आर्यिकाएं थीं । मन्दर चूलिकाएँ चालीस योजन ऊंची कही गई हैं ।
शान्ति अर्हन् चालीस धनुष ऊंचे थे
।
नागकुमार, नागराज भूतानन्द के चालीस लाख भवनावास कहे गये हैं । क्षुद्रिका विमान - प्रविभक्ति के तीसरे वर्ग में चालीस उद्देशन काल कहे गये हैं ।
फाल्गुन पूर्णमासी के दिन सूर्य चालीस अंगुल की पौरुषी छाया करके संचार करता है । कार्त्तिकी पुर्णिमा को भी चालीस अंगुल की पौरुषी छाया करके संचार करता है । महाशुक्र कल्प में चालीस हजार विमानावास कहे गये हैं ।
समवाय- ४० का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय- ४१
[११७] नमि अर्हत् के संघ में इकतालीस हजार आर्यिकाएं थीं ।
चार पृथ्वीयों में इकतालीस लाख नारकावास कहे गये हैं । जैसे— रत्नप्रभा में ३० लाख, पंकप्रभा में १० लाख, तमः प्रभा में ५ कम एक लाख और महातमः प्रभा में ५ । महालिका विमानप्रविभक्ति के प्रथम वर्ग में इकतालीस उद्देशनकाल कहे गये हैं ।
समवाय-४२
[११८] श्रमण भगवान् महावीर कुछ अधिक बयालीस वर्ष श्रमण पर्याय पालकर सिद्ध, बुद्ध, यावत् (कर्म-मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और ) सर्व दुःखों से रहित हुए ।
जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप की जगती की बाहरी परिधि के पूर्वी चरमान्त भाग से लेकर वेलन्धर नागराज के गोस्तूभनामक आवास पर्वत के पश्चिमी चरमान्त भाग तक मध्यवर्ती क्षेत्र का विना किसी बाधा या व्यवधान के अन्तर बयालीस हजार योजन कहा गया है । इसी प्रकार चारों दिशाओं में भी उदकभास शंख और उदकसीम का अन्तर जानना चाहिए ।
कालोद समुद्र में बयालीस चन्द्र उद्योत करते थे, उद्योत करते हैं और उद्योत करेंगे । इसी प्रकार बयालीस सूर्य प्रकाश करते थे, प्रकाश करते हैं और प्रकाश करेंगे । सम्मूर्च्छिम भुजपरिसर्पों की उत्कृष्ट स्थिति बयालीस हजार वर्ष कही गई है ।