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________________ समवाय-३५/१११ २१७ कुन्थु अर्हन् पैंतीस धनुष ऊंचे थे । दत्त वासुदेव पैंतीस धनुष ऊंचे थे । नन्दन बलदेव पैंतीस धनुष ऊंचे थे । सौधर्म कल्प में सुधर्मासभा के माणवक चैत्यस्तम्भ में नीचे और ऊपर साढ़े बारहसाढ़े बारह योजन छोड़ कर मध्यवर्ती पैंतीस योजनों में, वज्रमय, गोल वर्तुलाकार पेटियों में जिनों की मनुष्यलोक में मुक्त हुए तीर्थंकरों की अस्थियां रखी हुई हैं । दूसरी और चौथी पृथ्वीयों में (दोनों के मिला कर) पैंतीस लाख नारकावास हैं । समवाय-३५ का मुनिदीपरत्नसाग कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण समवाय-३६ [११२] उत्तराध्ययन सूत्र के छत्तीस अध्ययन हैं । जैसे— विनयश्रुत, परीषह, चातुरङ्गीय, असंस्कृत, अकाममरणीय, क्षुल्लकनिर्ग्रन्थीय, औरभ्रीय, कापिलीय, नमिप्रव्रज्या, द्रुमपत्रक, बहुश्रुतपूजा, हरिकेशीय, चित्तसंभूतीय, इषुकारीय, सभिक्षु, समाधिस्थान, पापश्रमणीय, संयतीय, मृगापुत्रीय, अनाथप्रव्रज्या, समुद्रपालीय, स्थनेमीय, गौतमकेशीय, समिति, यज्ञीय, सामाचारी, खलुंकीय, मोक्षमार्गगति, अप्रमाद, तपोमार्ग, चरणविधि, प्रमादस्थान, कर्मप्रकृति, लेश्या, अनगारमार्ग और जीवाजीवविभक्ति । असुरेन्द्र असुरराज चमर की सुधर्मा सभा छत्तीस योजन ऊंची है । श्रमण भगवान् महावीर के संघ में छत्तीस हजार आर्यिकाएं थीं । चैत्र और आसोज मास में सूर्य एक वार छत्तीस अंगुल की पौरुषी छाया करता है । (समवाय-३७) [११३] कुन्थु अर्हन के सैंतीस गण और सैंतीस गणधर थे । हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र की जीवाएं सैंतीस हजार छह सौ चौहत्तर योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से कुछ कम सोलह भाग लम्बी कही गई हैं । क्षुद्रिका विमानप्रविभक्तिनामक कालिकश्रुत के प्रथमवर्ग में सैंतीस उद्देशनकाल हैं । कार्तिक कृष्णा सप्तमी के दिन सूर्य सैंतीस अंगुल की पौरुषी छाया करता हुआ संचार करता है । (समवाय-३८) [११४] पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् के संघ में अड़तीस हजार आर्यिकाओं की उत्कृष्ट आर्यिकासम्पदा थी। हैमवत और ऐरण्यवत क्षेत्रों की जीवाओं का धनुःपृ,ठ अड़तीस हजार सात सौ चालीस योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से दश भाग से कुछ कम परिक्षेपवाला कहा गया है । जहाँ सूर्य अस्त होता है, उस पर्वतराज मेरु का दूसरा कांड अड़तीस हजार योजन ऊंचा है। क्षुद्रिका विमानप्रविभक्ति नामक कालिक श्रुत के द्वितीय वर्ग में अड़तीस उद्देशन काल कहे गये हैं।
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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