________________
२१४
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
समवाय-३३ [१०९] शैक्ष याने कि शिष्य के लिए सम्यग्दर्शनादि धर्म की विराधनारूप आशातनाएं तेतीस कही गई हैं । जैसे-शैक्ष (नवदीक्षित) साधु रात्निक (अधिक दीक्षा पर्याय वाले) साधु के (१) अति निकट होकर गमन करे । (२) शैक्ष साधु रात्निक साधु के आगे गमन करे । (३) शैक्ष साधु रात्निक साधु के साथ बराबरी से चले । (४) शैक्ष साधु रात्निक साधु के आगे खड़ा हो, (५) शैक्ष साधु रात्निक साधु के साथ बराबरी से खड़ा हो । (६) शैक्ष साधु रात्निक साधु के अतिनिकट खड़ा हो । (७) शैक्ष साधु रात्निक साधु के आगे बैठे । (८) शैक्ष साधु रानिक साधु के साथ बराबरी से बैठे । (९) शैक्ष साधु रानिक साधु के अति समीप बैठे । (१०) शैक्ष साधु रात्निक साधु के साथ बाहर विचारभूमि को निकलता हुआ यदि शैक्ष रात्निक साधु से पहले आचमन करे ।
(११) शैक्ष साधु रात्निक साधु के साथ बाहर विचार-भूमि को या विहारभूमि को निकलता हुआ यदि शैक्ष रानिक साधु से पहिले आलोचना करे और रात्लिक पीछे करे । (१२) कोई साधु रात्निक साधु के साथ पहले से बात कर रहा हो, तब शैक्ष साधु रानिक साधु से पहिले ही बोले और रात्निक साधु पीछे बोल पावें । (१३) रानिक साधु रात्रि में या विकाल में शैक्ष से पूछे कि आर्य ! कौन सा रहे हैं और कौन जाग रहे हैं ? यह सुनकर भी यदि शैक्ष अनसुनी करके कोई उत्तर न दे । (१४) शैक्ष साधु अशन, पान, खादिम या स्वादिम लाकर पहिले किसी अन्य शैक्ष के सामने आलोचना करे पीछे रात्निक साधु के सामने । (१५) शैक्ष साधु अशन, पान, खादिम या स्वादिम को लाकर पहले किसी अन्य शैक्ष को दिखलावे, पीछे रात्निक साधु को दिखावे । (१६) शैक्ष साधु अशन, पान, खादिम या स्वादिम-आहार लाकर पहले किसी अन्य शैक्ष को भोजन के लिए निमंत्रण दे और पीछे रानिक साधु को निमंत्रण दे ।
(१७) शैक्ष साधु रात्निक साधु के साथ अशन, पान, खादिम, स्वादिम आहार को लाकर रात्निक साधु से विना पूछे जिस किसी को दे । (१८) शैक्ष साधु अशन, पान, खादिम, स्वादिम आहार लाकर रात्निक साधु के साथ भोजन करता हुआ यदि उत्तम भोज्य पदार्थों को जल्दी-जल्दी बड़े-बड़े कवलों से खाता है । (१९) रात्निक साधु के द्वारा कुछ कहे जाने पर यदि शैक्ष उसे अनसुनी करता है । (२०) रात्निक साधु के द्वारा कुछ कहे जाने पर यदि शैक्ष अपने स्थान पर ही बैठे हुए सुनता है । (२१) रात्निक साधु के द्वारा कुछ कहे जाने पर 'क्या कहा ?' इस प्रकार से यदि शैक्ष कहे । (२२) शैक्ष रात्निक साधु को 'तुम' कह कर बोले । (२३) शैक्ष रात्निक साधु से यदि चप-चप करता हुआ उदंडता से बोले ।
(२४) शैक्ष, रात्निक साधु के कथा करते हुए की 'जी हाँ, आदि शब्दों से अनुमोदना न करे । (२५) शैक्ष, रात्निक के द्वारा धर्मकथा कहते समय 'तुम्हें स्मरम नहीं' इस प्रकार से बोले तो । (२६) शैक्ष, रात्निक के द्वारा धर्मकथा कहते समय 'बस करो' इत्यादि कहे । (२७) शैक्ष, रात्निक के द्वारा धर्मकथा कहते समय यदि परिषद् को भेदन करे । (२८) शैक्ष, रात्निक साधु के धर्मकथा कहते हुए उस सभा के नहीं उठने पर दूसरी या तीसरी वार भी उसी कथा को कहे । (२९) शैक्ष, रात्निक साधु के धर्मकथा कहते हुए यदि कथा की काट करे ।