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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
एक कालचक्र कहलाता है ।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति बीस पल्योपम कही गई है । छठी तमःप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति बीस सागरोपम कही गई है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति बीस पल्योपम कही गई है ।।
सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति बीस पल्योपम है । प्राणत कल्प में देवों की उत्कृष्ट स्थिति बीस सागरोपम है । आरण कल्प में देवों की जघन्य स्थिति बीस सागरोपम है । वहां जो देव सात, विसात, सुविसात, सिद्धार्थ, उत्पल, भित्तिल, तिगिंछ, दिशासौवस्तिक, प्रलम्ब, रुचिर, पुष्प, सुपुष्प, पुष्पावर्त, पुष्पप्रभ, पुष्पदकान्त, पुष्पवर्ण, पुष्पलेश्य, पुष्पध्वज, पुष्पश्रृंग, पुष्पसिद्ध (पुष्पसृष्ट) और पुष्पोत्तरावतंसक नाम के विशिष्ट विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति बीस सागरोपम है । वे देव दश मासों के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास-निःश्वास लेते हैं । उन देवों की बीस हजार वर्षों के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है ।
कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो बीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परमनिर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे । समवाय-२० का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(समवाय-२१) [५१] इक्कीस शबल हैं (जो दोष रूप क्रिया-विशेषों के द्वारा अपने चारित्र को शबल कर्बुरित, मलिन या धब्बों से दूषित करते हैं) १. हस्त-मैथुन करनेवाला शबल, २. स्त्री आदि के साथ मैथुन सेवन करने वाला शबल, ३. रात में भोजन करने वाला शबल, ४. आधाकर्मिक भोजन को सेवन करने वाला शबल, ५. सागारिक का भोजन-पिंड ग्रहण करने वाला शबल, ६. औद्देशिक, बाजार से क्रीत और अन्यत्र से लाकर दिये गये भोजन को खाने वाला शबल, ७. बार-बार प्रत्याख्यान कर पुनः उसी वस्तु को सेवन करने वाला शबल, ८. छह मास के भीतर एक गण से दूसरे गण में जाने वाला शबल, ९. एक मास के भीतर तीन वार नाभिप्रमाण जल में प्रवेश करने वाला शबल, १०. एक मास के भीतर तीन वार मायास्थान को सेवन करने वाला शबल ।
११. राजपिण्ड खाने वाला शबल, १२. जान-बूझ कर पृथ्वी आदि जीवों का घात करने वाला शबल, १३. जान-बूझ कर असत्य वचन बोलनेवाला शबल, १४. जान-बूझकर विना दी (हुई) वस्तु को ग्रहण करनेवाला शबल, १५. जान-बूझ कर अनन्तर्हित (सचित्त) पृथ्वी पर स्थान, आसन, कायोत्सर्ग आदि करने वाला शबल, १६. इसी प्रकार जान-बूझ कर सचेतन पृथ्वी पर, सचेतन शिला पर और कोलावास लकड़ी आदि पर स्थान, शयन आसन आदि करने वाला शबल, १७. जीव-प्रतिष्ठित, प्राण-युक्त, सबीज, हरित-सहित, कीड़े-मकोड़े वाले, पनक, उदक, मृत्तिका कीड़ीनगरा वाले एवं इसी प्रकार के अन्य स्थान पर अवस्थान, शयन, आसनादि करने वाला शबल, १८. जान-बूझ कर मूल-भोजन, कन्द-भोजन, त्वक्भोजन, प्रबाल-भोजन, पुष्प-भोजन, फल-भोजन और हरित-भोजन करने वाला शबल, १९. एक वर्ष के भीतर दश वार जलावगाहन या जल में प्रवेश करने वाला शबल, २०. एक वर्ष