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________________ १९८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद भगवान् महावीर ने सक्षुद्रक-व्यक्त-सभी श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अठारह स्थान कहे हैं । [४४] व्रतषट्क, कायषट्क, अकल्प, गृहिभाजन, पर्यङ्क, निषद्या, स्नान और शरीर शोभा का त्याग । [४५] चूलिका-सहित भगवद्-आचारङ्ग सूत्र पद-प्रमाण से अठारहहजार पद हैं । ब्राह्मीलिपि के लेख-विधान अठारह प्रकार के कहे गये हैं । जैसे- ब्राह्मीलिपि, यावनीलिपि, दोषउपरिकालिपि, खरोष्ट्रिकालिपि, खर-शाविकालिपि, प्रहारातिकालिपि, उच्चत्तरिकालिपि, अक्षरपृष्ठिकालिपि, भोगवतिकालिपि, वैणकियालिपि, निलविकालिपि, अंकलिपि, गणितलिपि, गन्धर्वलिपि, [भूतलिपि] आदर्शलिपि, माहेश्वरीलिपि, दामिलिपि, पोलिन्दीलिपि । अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व के अठारह वस्तु नामक अर्थाधिकार कहे गये हैं । धूमप्रभा नामक पांचवीं पृथ्वी की मोटाई एकलाख अठारहहजार योजन है । पौष और आषाढ़ मास में एक बार उत्कृष्ट रात और दिन अठारह मुहूर्त के होते हैं । इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की उत्कृष्ट स्थिति अठारह पल्योपम कही गई है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति अठारह पल्योपम कही गई है । सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति अठारह पल्पोपम है । सहस्त्रार कल्प में देवों की उत्कृष्ट स्थिति अठारह सागरोपम है । आनत कल्प में कितनेक देवों की जघन्य स्थिति अठारह सागरोपम है । वहां जो देव काल, सुकाल, महाकाल, अंजन, रिट, साल, समान, द्रुम, महाद्रुम, विशाल, सुशाल, पद्म, पद्मगुल्म, कुमुदगुल्म, नलिन, नलिनगुल्म, पुण्डरीक, पुण्डरीकगुल्म और सहस्त्रारावतंसक नाम के विशिष्ट विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की स्थिति अठारह सागरोपम कही गई है । वे देव नौ मासों के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास-निःश्वास लेते हैं । उन देवों के अठारह हजार वर्ष के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है । कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो अठारह भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे । समवाय-१८ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (समवाय-१९) [४६] ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र के (प्रथम श्रुतस्कन्ध के) उन्नीस अध्ययन कहे गये हैं । जैसे [४७] १. उत्क्षिप्तज्ञात, २. संघाट, ३. अंड, ४. कूर्म, ५. शैलक, ६. तुम्ब, ७. रोहिणी, ८. मल्ली, ९. माकंदी, १०. चन्द्रिमा । [४८] ११. दावद्रव, १२. उदकज्ञात, १३. मंडूक, १४. तेतली, १५. नन्दिफल, १६. अपरकंका, १७. आकीर्ण, १८. सुंसुमा और पुण्डरीकज्ञात । [४९] जम्बूद्वीप में सूर्य उत्कृष्ट एक हजार नौ सौ योजन ऊपर और नीचे तपते हैं । शुक्र महाग्रह पश्चिम दिशा से उदित होकर उन्नीस नक्षत्रो के साथ सहगमन करता हुआ पश्चिम दिशा में अस्तंगत होता है । जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप की कलाएं उन्नीस छेदनक (भागरूप) कही गई हैं ।
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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