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समवाय- १५/३६
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[३६] छह नक्षत्र पन्द्रह मुहूर्त तक चन्द्र के साथ संयोग करके रहने वाले कहे गये हैं । जैसे - शतभिषक्, भरणी, आर्द्रा, आश्लेषा, स्वाति और ज्येष्ठा । ये छह नक्षत्र पन्द्रह मुहूर्त तक चन्द्र से संयुक्त रहते हैं ।
[३७] चैत्र और आसौज मास में दिन पन्द्रह - पन्द्रह मुहूर्त का होता है । इसी प्रकार चैत्र और आसौज मास में रात्रि भी पन्द्रह - पन्द्रह मुहूर्त की होती है ।
विद्यानुवाद पूर्व के वस्तु नामक पन्द्रह अर्थाधिकार कहे गये हैं ।
मनुष्यों के पन्द्रह प्रकार के प्रयोग कहे गये हैं । जैसे—— सत्यमनः प्रयोग, मृषामनः प्रयोग, सत्यमृषामनः प्रयोग, असत्यमृषामनः प्रयोग, सत्यवचनप्रयोग, मृषावचनप्रयोग, सत्य - मृषावचनप्रयोग, असत्यामृषावचनप्रयोग, औदारिकशरीरकायप्रयोग, औदारिकमिश्र शरीरकायप्रयोग, वैक्रियशरीरकायप्रयोग, वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोग, आहारकशरीरकायप्रयोग, आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोग और कार्मणशरीरकायप्रयोग ।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति पन्द्रह पल्योपम कही गई है । पांचवीं धूमप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति पन्द्रह सागरोपम कही गई है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति पन्द्रह पल्योपम कही गई है ।
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सौधर्म ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति पन्द्रह पल्योपम है । महाशुक्र कल्प में कितनेक देवों की स्थिति पन्द्रह सागरोपम है । वहाँ जो देव नन्द, सुनन्द, नन्दावर्त, नन्दप्रभ, नन्दकान्त, नन्दवर्ण, नन्दलेश्य, नन्दध्वज, नन्दश्रृंग, नन्दसृष्ट, नन्दकूट और नन्दोत्तरावतंसक नाम के विशिष्ट विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति पन्द्रह सागरोपम है । वे देव साढ़े सात मासों के बाद आन-प्राण- उच्छ्वास- निःश्वास लेते हैं । उन देवों को पन्द्रह हजार वर्षों के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है ।
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कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं, जो पन्द्रह भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परिनिर्वाण प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे ।
समवाय- १५ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-१६
[३८] सोलह गाथा - षोडशक कहे गये हैं । जैसे— समय, वैतालीय, उपसर्ग परिज्ञा, स्त्री-परिज्ञा, नरकविभक्ति, महावीरस्तुति, कुशीलपरिभाषित, वीर्य, धर्म, समाधि, मार्ग, समवसरण, याथातथ्य, ग्रन्थ, यमकीय और सोलहवाँ गाथा ।
कषाय सोलह कहे गये हैं । जैसे— अनन्तानुबन्धी क्रोध, अनन्तानुबन्धी मान, अनन्तानुबन्धी माया, अनन्तानुबन्धी लोभ; अप्रत्याख्यानकषाय क्रोध, अप्रत्याख्यानकषाय मान, अप्रत्याख्यानकषाय माया, अप्रत्याख्यानकषाय लोभ; प्रत्याख्यानावरण क्रोध, प्रत्याख्यानावरण मान, प्रत्याख्यानावरण माया, प्रत्याख्यानावरण लोभ; सज्वलन क्रोध, संज्वलन मान, संज्वलन माया और संज्वलन लोभ ।
मन्दर पर्वत के सोलह नाम कहे गये हैं । जैसे ---
[३९] १ मन्दर, २ मेरु, ३ मनोरम, ४ सुदर्शन, ५ स्वयम्प्रभ, ६ गिरिराज, ७ रत्नोच्चय, ८ प्रियदर्शन, ९ लोकमध्य, १० लोकनाभि ।