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स्थान- १०/-/८९८
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ले । रोग होने से - सनत्कुमार चक्रवर्ती के समान रोग होने से दीक्षा ले । अनादर से- नंदीषेण के समान अनादर से दीक्षा ले । देवता के उपदेश से मेतार्य के समान देवता के उपदेश से क्षाले । पुत्र के स्नेह से वज्रस्वामी की माताजी के समान पुत्र स्नेह से दीक्षा ले ।
[८९९] श्रमण धर्म दस प्रकार का है, यथा - क्षमा, निर्लोभता, सरलता, मृदुता, लघुता, सत्य, संयम, तप, त्याग, ब्रह्मचर्य ।
वैयावृत्य दस प्रकार की है, यथा - आचार्य की वैयावृत्य, उपाध्याय की वैयावृत्य, स्थविर साधुओं की वैयावृत्य, तपस्वी की वैयावृत्य, ग्लान की वैयावृत्य, शैक्ष की वैयावृत्य, कुल की वैयावृत्य, गण की वैयावृत्य, चतुर्विध संघ की वैयावृत्य, साधर्मिक की वैयावृत्य । [९००] जीव परिणाम दस प्रकार के हैं, यथा-गति परिणाम, इन्द्रिय परिणाम, कषाय परिणाम, लेश्या परिणाम, योगपरिणाम, उपयोग परिणाम, ज्ञान परिणाम, दर्शन परिणाम, चारित्र परिणाम, वेद परिणाम ।
अजीव परिणाम दस प्रकार के हैं, यथा-बन्धन परिणाम, गति परिणाम, संस्थान परिणाम, भेद परिणाम, वर्ण परिणाम, रस परिणाम, गंध परिणाम, स्पर्श परिणाम, अगुरु लघु परिणाम, शब्द परिणाम ।
[९०१] आकाश सम्बन्धी अस्वाध्याय दश प्रकार का है, यथा - उल्कापात - आकाश से प्रकाश पुंज का गिरना । दिशादाह - महानगर के दाह के समान आकाश में प्रकाश का दिखाई देना । गर्जना - आकाश में गर्जना होना । विद्युत - अकाल में विद्युत चमकना । निर्घात - आकाश में व्यन्तर देव कृत महाध्वनि अथवा भूकम्प की ध्वनि । जूयग-संध्या और चन्द्रप्रभा का मिलना । यक्षादीप्त - आकाश में यक्ष के प्रभाव से जाज्वल्यमान अग्नि का दिखाई देना । धूमिका - धुंए जैसे वर्णवाली सूक्ष्मवृष्टि । मिहिका - शरद् काल में होने वाली सूक्ष्म वर्षा अर्थात् ओस गिरना, रजघात - चारों दिशा में सूक्ष्म रज की वृष्टि ।
औदारिक शरीर सम्बन्धी अस्वाध्याय दस प्रकार का हैं, यथा-- अस्थि, माँस, रक्त, अशुचि के समीप, स्मशान के समीप, चन्द्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण, पतन -राजा, मंत्री, सेनापति या ग्रामाधिपति आदि का मरण, राजविग्रह-युद्ध, उपाश्रय में मनुष्य आदि का मृत शरीर पड़ा हो तो सौ हाथ पर्यन्त अस्वाध्याय क्षेत्र हैं ।
[ ९०२] पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा न करने वाले को दस प्रकार का संयम होता हैं । यथा-श्रोत्रेन्द्रिय का सुख नष्ट नहीं होता । श्रोत्रेन्द्रिय का दुःख प्राप्त नहीं होता यावत्स्पर्शेन्द्रिय का दुःख प्राप्त नहीं होता ।
इसी प्रकार दस प्रकार का असंयम भी कहना चाहिए ।
[९०३] सूक्ष्म दस प्रकार के हैं, यथा-प्राण सूक्ष्म - कुंथुआ आदि । पनक सूक्ष्मफूलण आदि । बीज सूक्ष्म- डांगर आदि का अग्र भाग । हरित सूक्ष्म सूक्ष्म हरी घास । पुष्प सूक्ष्म - वड आदि के पुष्प । अंडसूक्ष्म - कीड़ी आदि के अण्डे । लयनसूक्ष्म - कीड़ी नगरादि । स्नेह सूक्ष्म धुंअर आदि । गणित सूक्ष्म-सूक्ष्म बुद्धि से गहन गणित करना | भंग सूक्ष्म - सूक्ष्म बुद्धि से गहन भांगे बनाना ।
[९०४] जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से दक्षिण दिशा में गंगा और सिन्धु महानदी में दस महानदियाँ मिलती हैं । यथा - गंगा नदी में मिलने वाली पाँच नदियाँ - यमुना, सरयू, आवी,